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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
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अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी वर्ग के पूजा-स्थान या उसके भाग को किसी अन्य वर्ग के पूजा-स्थान या उसके भाग में नहीं बदल सकता है। पूजा-स्थान की धार्मिक पद्धति जो 15 अगस्त 1947 को लागू थी वह पद्धति ही आगे चालू रहेगी।
सम्राट अकबर ने जब फरमान जारी किया तब दिगम्बर धर्मावलम्बियों ने कभी भी कोई एतराज नहीं किया। जिसका तात्पर्य यह है कि फरमान में जो स्थिति है वह उनको मान्य थी। अब वे एस्टोपल कानून के कारण न्यायालय के दरवाजे नहीं खटखटा सकते।
शिखरजी की पहाड़ियों पर दिगम्बरी समाज की कोई मूर्ति नहीं है इसलिये वहां पर उनके अधिकारों की मांग करना सत्य से परे है।
आनंदजी कल्याणजी कोई व्यापारिक संस्था नहीं है यह एक चेरीटेबल संस्था है जो कि पब्लिक चेरीटेबल ट्रस्ट एक्ट के तहत पंजीकृत (रजिस्टर्ड) है। इसका एक चेरीटेबल कमिश्नर है। इस संस्था के मेमोरेन्डम एवं आर्टीकल इस विचार की पुष्टि करते हैं।
इसलिये अब यह स्पष्ट है कि इस विषय पर अब किसी बहस और तर्क करने की कोई आवश्यकता नहीं है सिवाय इसके कि यह स्वीकार कर लिया जावे कि पारसनाथ हिल्स (सम्मेद शिखरजी) श्वेताम्बर जैनियों का ही है।
-मंगलचन्द बैद
एडवोकेट
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