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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
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2. केशरियाजी का विवादः
मेवाड़ महाराणा द्वारा व्यवस्था के लिए गठित 8 सदस्यों की कमेटी की शिथिलता के कारण देवस्थान विभाग ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। इसके लिए 1962 में राजस्थान हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। 30.3.66 के निर्णय में यह मन्दिर श्वेताम्बर घोषित कर दिया। राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की जिसके अन्तर्गत यह मन्दिर जैन घोषित हुआ। 1981 में श्वेताम्बर समाज एवं 1983 में दिगम्बर समाज ने अपीलें की जिसके लिए 2.2.97 को निर्णय दिया कि सरकार इसके लिए कमेटी का गठन करें । उपरोक्त आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने डबल बैंच में तथा हिन्दुओं ने हिन्दु मन्दिर घोषित करने की अपील दायर कर दी।
3. प्रसिद्ध तीर्थ श्रीमहावीरजी का विवादः
यह तीर्थ दिल्ली-बम्बई रेलमार्ग पर स्थित है तथा इसी नाम से स्टेशन है। सड़क मार्ग से भी विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। मूलनायक भूगर्भ से निकले मल्लियागिरी रंग के अति चमत्कारी हैं। शुरू से ही हिन्डोन, जिला सवाईमाधोपुर, के श्वेताम्बर पल्लीवाल पंचायत के हाथ में इसकी व्यवस्था रही। इस मन्दिर का निर्माण भरतपुर राज के दीवान जोधराज ने कराया। विजयगच्छ के महानन्दसागर सूरिजी द्वारा संवत् 1862 में इस मूर्ति की प्रतिष्ठा हुई। दिगम्बर समाज द्वारा कालान्तर में अनाधिकृत चेष्टा की गई और इस पर भी कब्जा करने की कोशिश चालू हुई। श्वेताम्बर पल्लीवाल पंचायत, खासतौर से स्वर्गीय श्रीनारायणलालजी पल्लीवाल ने इसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com