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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
तीर्थ पर भी दिगम्बर समाज ने अपना प्रभुत्व जमाने के लिए चेष्टा शुरू कर दी। इसके बाद जो मुख्य तीर्थों पर विवाद चल रहे हैं उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है :
1. सम्मेतशिखर तीर्थ का विवाद :
इस तीर्थ की मालकी, संचालन एवं अधिकार बहुत पुराने समय से श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय और संघ के हाथ में था। अकबर बादशाह एवं प्रिवी कॉउन्सिल ने भी इन पर अपनी मन्जूरी दी थी।
दिनांक 5.2.65 को हुए द्वि-पक्षीय करार के जरिये इस सारे तीर्थ पर श्री आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट के अधिकारों का समर्थन किया था जो बिहार सरकार के साथ हुआ था। सेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी ट्रस्ट ने दिगम्बरों के विरूद्व 1967 में पहाड़ पर निर्माण को रोकने के लिए मुकदमा दायर किया। दिगम्बरों ने भी सन् 1968 में मुकदमा दायर किया। दोनों मुकदमों का फैसला 3 मार्च, 90 को हुआ। इस फैसले के विरूद्ध श्वेताम्बर, दिगम्बर और बिहार सरकार ने रांची हाईकोर्ट में अपील दायर की। इसका फैसला 1 जुलाई 1997 को हुआ जिसके अनुसार 5.2.65 के करार को रद्द कर दिया । सेठ आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट को व्यवसायी ट्रस्ट माना तथा पूरे पहाड़ को सरकार ने अपने हाथ में ले लिया । समेतशिखरजी की चोटी पर आधा मील के फैलाव में बने हुए मन्दिरों को सम्पूर्ण जैन समाज का घोषित कर दिया। इस आदेश के खिलाफ आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट ने डबल बैंच में अपील दायर कर यथास्थिति के आदेश प्राप्त कर लिये हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com