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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
ही मूर्ति निर्माण एवं उनकी मान्यताओं में भिन्नता आने लगी। इन भेदों की कठोरता के बारे में श्रीरतनमन्दीरगणी की किताब 'भोजा प्रबन्ध' जो संवत् 1537 में लिखी गई थी के अनुसार गिरनार पहाड़ को लेकर प्रारम्भ हुई। इसका धर्मसागरजी द्वारा लिखित पुस्तक ‘प्रवच्छा परीक्षा' (संवत् 1629) में उल्लेख है। यह विवाद एक महीने तक लगातार चालू रहा । अन्त में अम्बिका देवी ने प्रकट होकर निर्णय दिया कि जो लोग स्त्री को मोक्ष का अधिकारी मानते हों वही इस तीर्थक्षेत्र के अधिकारी हैं । इस पर दिगम्बर लोग पीछे हट गये। आगे से कोई झगड़ा न हो इसलिए आगे से भगवान की बनने वाली मूर्तियों में दिगम्बर लोग पुरूष लिंग का चिन्ह बनाने लगे एवं श्वेताम्बर मूर्तियां बैठी हुई, पैर के नीचे कन्दौरा और लंगोट के लिए सलवट के निशान बनने लगे। ये भेद पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य में चालू हुए।
आमनाओं की मान्यताओं में मुख्य भेद निम्नानुसार प्रचलित
____ 1. दिगम्बर आमनाय वाले स्त्री को मोक्ष का अधिकारी नहीं मानते हैं जबकि श्वेताम्बर मानते हैं।
2. दिगम्बर 24 तीर्थंकरों में से 5 को अविवाहित मानते हैं जबकि श्वेताम्बर केवल 3 को ही मानते हैं।
3. दिगम्बर साधु हथेली पर, उसी स्थान पर तथा उसी समय आहार ग्रहण करते हैं। श्वेताम्बर साधु घर-घर से आहार लाकर अपने ठहरने की जगह आहार करते हैं।
4. दिगम्बर 5 पाण्डुओं की मुक्ति नहीं मानते हैं जबकि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com