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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
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"लालू यादव हालाकि धर्म निरपेक्षता का दम भरते हैं फिर भी वह जानबूझ कर धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं | गयाजी मन्दिर में उन्होंने जानबूझ कर विवाद खड़ा किया। अब वह अपने दलित प्रेम के कारण उसे नवबौद्धों को सौंपने की तैयारी कर रहे हैं। उनके वरदहस्त के कारण वहाँ पर बौद्धों ने हिन्दू मूर्तियों से तोड़फोड़ तक कर डाली। अपनी लीडरी की दुकान चमकाने के लिए वह हिन्दुओं और नवबौद्धों को भिड़ा रहे हैं। रांची के समीप जगन्नाथ के ऐतिहासिक मन्दिर को भी उन्होंने विवाद में उलझा दिया है। गत दिनों वैशाली में भगवान महावीर की जन्मस्थली पर भी कब्जा करने का प्रयास हुआ।लालू यादव ने हरिजन शंकराचार्य नियुक्त करने का शोथा छेड़ा। उनके ही एक कृपा पात्र पुलिस अधिकारी कुणाल किशोर ने पटना के हनुमान मन्दिर में हरिजन पुजारी नियुक्त किया है। लालू वोट बटोरने के लिए विभिन्न जातियों और सम्प्रदायों को आपस में लड़वा रहे है।'
इसी तरह "राजस्थान पत्रिका" दैनिक ने अपने 10 जनवरी 1994 के अंक में जो सम्पादकीय लेख प्रकाशित किया है वह सम्मेत शिखरजी विवाद में लालू यादव की करतूत का अच्छा चित्रण प्रस्तुत करता है। सम्पादकीय लेख इस प्रकार है
सम्मेद शिखर विवाद बिहार में प्रसिद्ध जैन तीर्थ सम्मेद शिखर के प्रबन्ध को लेकर श्वेताम्बर समुदाय और दिगम्बरों के बीच विवाद में बिहार सरकार • के इस फैसले ने आग में घी का काम किया है जिसमें प्रबन्ध की
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