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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
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चाहिए। यदि वे व्यवस्था में कोई सुधार चाहते हैं तो इसके प्रबन्धक ट्रस्ट से बातचीत करनी चाहिए। दोनों समुदाय एक ही धर्म के अनुयायी हैं, ऐसी स्थिति में ऐसे धार्मिक आस्था के मुद्दों को अदालत में घसीटना या राजनीतिक सत्ता का दखल किसी के हित में नहीं होगा, इस सच्चाई को समझना चाहिए। केवल प्रबन्ध में खामियों की आड़ में ऐसे पवित्र तीर्थस्थल को विवादास्पद बनाना किसी के हित में नहीं होगा। इस तीर्थस्थल की सम्पूर्ण जैन समाज में मान्यता है। आस्था के प्रश्न न तो अदालतें निपटा सकती हैं और न सरकारें । इस बुनियादी बात को समझ कर ही इस विवाद को हल किया जाना चाहिए।"
प्रथम तो साहू अशोक जैन अपने ही समाचार-पत्रों में अपने को बार-बार जैन समाज का शीर्ष नेता छपवा कर सरकार
और आम जनता को भ्रमित कर रहे हैं तथा किसी भी प्रमुख व्यक्ति के नाम से अपने पक्ष में मनघडन्त समाचार छपवा कर अपने साथ ही अपने अखबारों की विश्वसनीयता को भी खुले आम समाप्त कर रहे हैं। सम्मेद शिखर-विवाद को लेकर इनके अखबारों में जो कुछ छपा और छपता जा रहा है उसकी सारी पोल गत अप्रेल 1998 में "णमो तित्थस्स" में प्रकाशित निम्न लिखित दो उदाहरणों से स्वतः ही खुल जाती है
___ "साह अशोक जैन को उनके ही अखबार बार-बार जैन समाज का शीर्ष नेता लिख रहे हैं जबकि सचाई यह है कि साह अशोक जैन श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी और तेरापंथ, इन चार घटकों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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