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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
जाएगा। सरकार का इरादा है कि इस तीर्थस्थल के प्रबन्ध के लिए एक बोर्ड का गठन किया जाए जिसमें दोनों समुदायों के बराबर प्रतिनिधि हों और उसका अध्यक्ष कमिश्नर स्तर का कोई अधिकारी हो, जिसका सामान्यतया जैन दर्शन में विश्वास हो । दिगम्बर समाज का तर्क यह है कि इस तीर्थ की व्यवस्था बहुत खराब है और यात्रियों के लिए वर्तमान व्यवस्था, जिसका जिम्मा श्वेताम्बरों के हाथ में है, ठीक नहीं है । मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव का कहना है कि यह तीर्थ दोनों समुदायों का है और इसकी व्यवस्था दोनों समुदायों को मिलकर करनी चाहिए इसीलिए राज्य सरकार एक अध्यादेश जारी करके इसका अधिग्रहण करना चाहती है। इस सम्पूर्ण विवाद में एक बात उभर कर आती है कि सरकार क्या सभी धार्मिक स्थलों, तीर्थ स्थानों की व्यवस्था में अपना दखल करना चाहती है ? ऐसा नहीं है तो उसे सम्मेद शिखर जो श्वेताम्बर समुदाय का पवित्रतम तीर्थस्थल है और जिसकी व्यवस्था श्वेताम्बर समाज के ट्रस्ट के हाथ में है, में दखल करने की आवश्यकता क्यों पड़नी चाहिए ? किसी भी तीर्थ स्थान की व्यवस्था ठीक है या नहीं, यह मसला प्रबन्ध कर रहे ट्रस्ट और उस समुदाय के लोगों के ही तय करने की बात होनी चाहिए। यदि व्यवस्था के मुद्दे पर सरकारी दखल का रास्ता खोल दिया गया तो उसके काफी दूरगामी और गम्भीर परिणाम निकलेंगे। सम्मेद शिखर तीर्थ पर वेताम्बरों का अधिकार है या दिगम्बरों का अधिकार है, इसका फैसला अदालत कर सकती है, कार्यपालिका नहीं। सम्मेद शिखर तीर्थ
का प्रबन्ध 1953 में आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट को सौंपा गया था Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com