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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
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इसी समय पहाड़ पर जलमन्दिर, मधुबन में सात मन्दिर, धर्मशाला व पहाड़ के क्षेत्रपाल श्री भोमियाजी का मन्दिर आदि बनवाये गये । इन मन्दिरों की भी इसी मुहूर्त में प्रतिष्ठा सम्पन्न होने का उल्लेख है।
मन्दिर आदि का प्रबन्ध कार्यभार श्री श्वेताम्बर जैन संघ को सौंपा गया। इस प्रकार भाग्यवान जगत्सेठ श्री महताबचन्दजी की भावना सफल हुई। जगत्सेठ द्वारा किया गया यह महान कार्य जैन शासन में सदा अमर रहेगा। इस तीर्थ का यह इक्कीसवां जीर्णोद्धार माना जाता है।
तदुपरान्त अनेक जैन संघ यात्रार्थ आने लगे। पहाड़ की चोटियों पर स्थित स्तूप, चबूतरे चिन्हिकायें मुक्त आकाश के नीचे आछादनहीन होने से भयंकर आँधी, वर्षा, गर्मी-सर्दी, व बन्दरों के थरारती कार्यों के कारण पुनः उद्धार की आवश्यकता हुई । अतः वि. सं. १९२५ से १९३३ के दरमियान उद्धार करवाकर विजयगच्छ के जिनशान्तिसागरसूरिजी, खरतरगच्छ के जिनहंससूरिजी व श्री जिनचन्द्रसूरिजी के अस्ते पुनः प्रतिष्ठा करवाई। यह बाईसवां उद्धार माना गया । इस उद्धार के समय भगवान आदिनाथ, श्री वासुपूज्य भगवान, श्री नेमिनाथ भगवान, श्री महावीर भगवान तथा शाश्वतः जिनेश्वरदेव श्री ऋषभानन, चन्द्रानन, वारिषेण व वर्धमानन की नई देरियों का निर्माण हुआ । मधुबन में भी कुछ नये जिनालय बने।
यह पहाड़ जगत्सेठ को भेंट स्वरूप मिला हुआ होने पर भी जगत्सेठ द्वारा दुर्लक्ष्य हो जाने पर पालगंज राजा को दे दिया गया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com