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"सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?"
करने की कड़ी निन्दा करते हुए भारत के राष्ट्रपति महोदय तथा केन्द्रीय सरकार से इस अध्यादेश को तुरन्त निरस्त करने हेतु हजारों की संख्या में तार-पत्र और प्रस्ताव पास कर भिजवायें गये ।
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गत 31 मार्च 94 को तेरापंथी समाज की जैन महासभा दिल्ली ने एक प्रस्ताव पास कर कहा कि जैनों के सर्वाधिक पवित्र तीर्थ श्री सम्मेद शिखरजी (पारसनाथ हिल) के संदर्भ में बिहार सरकार द्वारा प्रस्तावित "बिहार श्री सम्मेद शिखरजी विनियमन अध्यादेश 1994 की तीव्र निन्दा करती है। जैन समाज, पूजनीय तीर्थों एवं धार्मिक तथा आन्तरिक मामलों में किसी भी प्रकार के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सरकारी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा।
अधिग्रहण का प्रस्तावित अधिनियम एक गलत शुरूआत है और इस परम्परा के दुरुपयोग की सम्भावना का खतरा अन्य जैन तीर्थों एवं पूजा स्थलों के लिए हमेशा बना रहेगा ।
प्रस्ताव में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, बिहार राज्य के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री महोदय से पुरजोर शब्दों में अपील की गई कि श्री सम्मेद शिखरजी के प्रति जैनों के भावात्मक एवं श्रद्धामय लगाव को देखते हुए प्रस्तावित अधिग्रहण अधिनियम (अध्यादेश) को तुरन्त रद्द करें।"
स्थानकवासी समाज के आचार्य देवेन्द्र मुनिजी ने सम्मेत शिखरजी विवाद पर गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए गत 2 अप्रेल
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