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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
पड़ेंगे, इसकी कल्पना करने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसी तरह श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह के प्रमुख और निकटतम साथीसहयोगी श्री लालूप्रसाद यादव ने सम्मेत शिखर के मामले में अपनी टांग घुसेड़ कर जो अध्यादेश प्रस्तुत किया है वह जैनसमाज को ऐसा छिन्न-भिन्न और प्रभावहीन कर देगा कि आज हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
सन् 1994 में लोकसभा में भी भू.पू. न्यायाधीश एवं भाजपा के सांसद श्री गुमानमल लोढ़ा ने बिहार में पारसनाथ सहित प्रसिद्ध जैन मन्दिर के तथाकथित अधिग्रहण की योजना पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त करते हुए केन्द्रीय सरकार से आग्रह किया कि वह देश भर के लगभग एक करोड़ जैनियों की धार्मिक भावनाओं का ख्याल करते हुए इसका अधिग्रहण न होने दें।
इसी तरह सन् 1994 में राज्य सभा के शून्यकाल में कांग्रेस (इ) की श्रीमती चन्द्रिका अभिनन्दन जैन एवं श्री चिमन भाई पटेल ने कहा कि जैन धर्मावलम्बियों के इस पवित्र तीर्थ के अधिग्रहण सम्बन्धी बिहार सरकार के अध्यादेश से पूरा जैन समुदाय काफी चिन्तित है। उन्होंने केन्द्र सरकार से अपील की कि वह बिहार सरकार द्वारा केन्द्र सरकार के पास भेजे गये इस अध्यादेश पर अपनी सहमति न दें।
इतना ही नहीं देश भर से श्वेताम्बर जैन समाज द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव द्वारा निम्नस्तर के राजनैतिक हथकण्डों के सहारे सम्मेद शिखर अधिग्रहण प्रस्ताव प्रस्तुत
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