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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
रखते । सिर में गुच्छेदार बाल हैं। स्त्रियां कद रूपी भयभीत लगती हैं । उनके सिर पर वस्त्र रखने व अंग पर कांचलियां पहिनने की प्रथा नहीं है | कांचली पहिने देखने से उनको आश्चर्य होता है । भील लोग धनुष-बाण लिये घूमते हैं । जंगल में फल, फूल विभिन्न प्रकार की औषधियां, जंगली जानवर व पानी के झरने हैं।
कुछ तीर्थ मालाओं में बताया गया है कि झरिया गांव में रघुनाथसिंह राजा, राज्य करता है। उनका दीवान सोमदास है । जो भी यात्री यात्रार्थ आता है उससे आठ आना कर लिया जाता है। एक और वर्णन है कि कतरास के राजा श्री कृष्णसिंह भी कर लेते हैं । रघुनाथपुर गांवसे 4 मील जाने पर पहाड़ का चढ़ाव आता है।
यह भी कहा जाता है कि पालगंज यहां की तलेटी थी । यात्रीगणों को प्रथम पालगंज जाकर वहां के राजा से मिलना पड़ता था। राजा के सिपाही यात्रियों के साथ रहकर दर्शन करवाते थे।
उस काल में पहाड़ पर क्या स्थिति थी उसका कोई खुला वर्णन नहीं मिल रहा है।
वि.सं. १८०५ में मुर्थीदाबाद के सेठ महताबरायजी को दिल्ली के बादशाह अहमदशाह द्वारा उनके कार्य से प्रसन्न होकर जगत्सेठ की उपाधि से विभूषित करने व सं. १८०९ में मधुबन कोठी, जयपार नाला, जलहरी कुण्ड, पारसनाथ तलहटी का ३०१ बीघा 'पारसनाथ पहाड़'' उन्हें उपहार देने का उल्लेख है।
वि.सं. १८१२ में बादशाह अबुअलीखान बहादुर ने पालगंजपारसनाथ पहाड़ को करमुक्त घोषित किया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com