________________
"सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?"
पारसनाथ पहाड़ के नाम से जाना जाता है । वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकर इस पावन भूमि में तपश्चर्या करते हुए अनेक मुनियों के साथ मोक्ष सिधारे हैं। पूर्व चौबीसियों के कई तीर्थंकर भी इस पावन भूमि से मोक्ष सिधारे हैं, ऐसी अनुश्रुति है ।
यह परम्परागत मान्यता है कि तीर्थंकरों के निर्वाण स्थलों पर सौधर्मेन्द्र ने प्रतिमाएँ स्थापित की थीं।
बीच के कई काल तक के इतिहास का पता नहीं । लगभग दूसरी शताब्दी में विद्यासिद्ध आचार्य श्री पादलिप्तसूरिजी आकाशगामिनी विद्या द्वारा यहां यात्रार्थ आया करते थे, ऐसा उल्लेख है । उसी भांति प्रभावक आचार्य श्री बप्पभट्टसूरिजी भी अपनी आकाशगामिनी विद्या द्वारा यात्रार्थ आते थे । विक्रम की नवमीं शताब्दी में आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजी सात बार यहां यात्रार्थ आये व उपदेश देकर जीर्णोद्धार का कार्य करवाया था ।
तेरहवीं सदी में आचार्य देवेन्द्रसूरिजी द्वारा रचित वन्दारुवृति में यहां के जिनालयों व प्रतिमाओं का उल्लेख है। कुंभारियाजी तीर्थ में स्थित एक शिलालेख में श्री शरणदेव के पुत्र वीरचन्द द्वारा अपने भाई, पुत्र व पौत्रों आदि परिवार के साथ आचार्य श्री परमानन्दसूरिजी के हाथों सं. १३४५ में यहां प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है ।
40
चम्पानगरी के निकटवर्ती अकबरपुर गांव के महाराजा मानसिंहजी के मंत्री श्री नानू द्वारा यहां मन्दिरों के निर्माण करवाने का उल्लेख सं. १६५९ में भट्टारक ज्ञानकीर्तिजी द्वारा रचित 'यशोधर चरित' में है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com