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'सम्मेद शिखर - विवाद क्यों और कैसा?"
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इसी प्रकार श्री (ऑल इण्डिया) जैन श्वेताम्बर कॉन्फ्रेंस बम्बई के मानद् मंत्री राजकुमार जैन ने 9 मई 1994 को एक परिपत्र जारी करते हुए सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद पर विस्तृत प्रकाश डाला है जिसे हम यहाँ ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं
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'श्री सम्मेद शिखरजी समस्त जैन समाज के लिये एक पवित्रतम तीर्थ है, जहाँ हमारे 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकर निर्वाण को प्राप्त हुए हैं। परम्परा से इस तीर्थ का स्वामित्व, नियन्त्रण तथा कब्जा, श्वेताम्बर जैन समाज का रहा है। मुगल बादशाह अकबर ने पूरी छानबीन के उपरान्त, श्वेताम्बर समाज को इस हेतु फरमान सन् 1593 में दिया था। जो सनद अब तक हमारे पास सुरक्षित है | सन् 1760 में बादशाह अहमद शाह ने इसकी पुष्टि की थी। सन् 1918 में अंग्रेजी सरकार ने तथा 1933 में प्रिवी कॉउन्सिल, 1965 तथा 1990 में बिहार सरकार ने स्पष्ट रूप से श्वेताम्बर समाज के इस अधिकार, स्वामित्व तथा नियन्त्रण को विधिवत स्वीकार किया है ।
समस्त श्वेताम्बर समाज की प्रतिनिधि संस्था 'आनन्दजी कल्याणजी ट्रस्ट' इसका संचालन कर रही है। आनन्दजी कल्याणजी किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है अपितु 'परम आनन्द' तथा 'सर्व कल्याण' का द्योतक है। यह ट्रस्ट 250 वर्ष पुराना है । समूचे भारत वर्ष से लगभग 130 प्रतिनिधि निर्वाचित होकर इस ट्रस्ट में नामांकित किये जाते हैं । तीर्थ स्थलों का उत्तम प्रबन्ध करने में आनन्दजी
कल्याणजी ट्रस्ट का शीर्ष स्थान है ।
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