________________
36
"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
घुसपैठ का मार्ग सहज ही सरकार के हाथ लग जाता है। यदि कोई व्यक्ति इर्ष्या या द्वेषवश पड़ौसी का घर लूटने या लुटवाने में किसी भी प्रकार से सहायक होने की भूल या गलती करता है तो उसे बड़ा आनन्द आता है लेकिन जब स्वयं का घर लुटता है तब उसे होश आता है कि पडौसी का घर लूटने या लुटवाने की भूल या गलती के दुष्परिणाम कितने भयंकर एवं पीड़ाजनक होते हैं।
यही स्थिति ऐतिहासिक और समूचे जैन समाज के पवित्र और पूजनीय तीर्थ स्थल सम्मेत शिखरजी की बना दी गई है। आज सम्मेद शिखरजी के प्रबन्ध में सरकार हस्तक्षेप करने जा रही है तो कल निश्चय ही सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक तीर्थ स्थल श्री महावीरजी एवं श्रवण बेलगोला में भी सरकार बहुत आसानी से उनके प्रबन्ध में हस्तक्षेप कर गुजरेगी। जिसे निश्चय ही वजनदार चुनौती अकेला दिगम्बर समाज हर्गिज नहीं दे पायेगा। इस कटु सत्य को नजर-अन्दाज कर सम्मेद शिखर के प्रबन्ध में दिगम्बर समाज भागीदारी पाने के लालच में बिहार सरकार द्वारा सम्मेद शिखर में किये जा रहे हस्तक्षेप में सहायक या एक पक्ष बनने की जो भूमिका निभा रहा है वह स्वयं उसके लिए भी आगे जाकर आत्म-हत्या जैसा कदम साबित होगी।
अब हम सम्मेद शिखरजी के प्रबन्ध के प्रति दिगम्बर समाज की मुख्य शिकायतों और प्रबन्ध में हिस्सेदारी पाने के प्रश्न को लेकर कुछ स्पष्ट और बेलाग चर्चा करना चाहेंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com