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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
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का अधिकार है।
इतना ही नहीं, स्वयं बिहार सरकारद्वारा भीसन् 1965 में श्वेताम्बर जैनों की मालिकी और अधिकारों को स्वीकार किया गया।इनसबमुंह बोलते सत्य एवंतथ्यों के अतिरिक्त सन् 1990 में बिहार की जिला कोर्ट ने भी श्वेताम्बरों के अधिकार को स्वीकार किया।
फिर भी कानूनी लड़ाई को यदि दिगम्बर समाज आगे बढ़ाता है तो यह उसके सोचने एवं समझने की बात है लेकिन अब तक की कानूनी लड़ाई के परिणामों से हताश होकर दिगम्बर समाज के नेता श्री अशोक जैन राजनैतिक दबाव का जो सहारा ले रहे हैं वह समूचे समाज और जैन धर्म को जाने-अनजाने ऐसी क्षति पहुँचाने का दूषित कार्य है जिसे इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा।
राजनैतिक दबाव तो एक ऐसी गेन्द है जो कभी किसी एक ही हाथ में नहीं रहती है। समय और परिस्थितियां, इस गेन्द से बाजी जीतने का मनसूबा बनाने वालों को क्षणिक लाभ दिलवा भी गुजरे तो कोई आश्चर्य नहीं, लेकिन यह कटु सत्य है कि ऐसा लाभ न तो स्थायी हो सकता है और न इसके परिणाम आगे जाकर समूचे समाज के हित में हो सकते हैं। सरकारी हस्तक्षेप को आमंत्रित करना या समर्थन करने से सरकार के होसले जब तेजी से आगे बढ़ते हैं तब वे न दिगम्बर देखते हैं और न श्वेताम्बर। दोनों सम्प्रदायों के पवित्र और धर्मिक स्थलों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com