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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
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हर मामले में सरकारी हस्तक्षेप को आमंत्रित करना या हस्तक्षेप का समर्थन करना एक ऐसी भूल या गलती है जिसके परिणाम आगे जाकर बहुत गम्भीर एवं दुःखद भुगतने पड़ते हैं। विशेष कर धार्मिक मामले में तो जब-तब सरकारी हस्तक्षेप को
आमंत्रित किया गया या उसका समर्थन किया गया परिणाम बहुत ही घातक निकले। सरकारों की अपनी एक मजबूरी है, वे आजकल धन-बल और वोटों की राजनीति के ऐसे चक्कर में घूम रही है जहां से सहज ही न्याय पाने की आशा करना स्वयं को धोखा देना है।
देश के प्रमुख और विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक तीर्थ स्थल सम्मेद शिखरजी (बिहार) का मामला भी सरकारी चपेट में उल्टे-सीधे रास्तों और चोर-दरवाजे से पहुँचाया गया है।
इस ऐतिहासिक तीर्थ स्थल पर पिछले लगभग 400 वर्षों से श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ का स्वामित्व है और श्री मूर्तिपूजक संघ की अ.भा. संस्था श्री आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी पिछले कई वर्षों से इसका प्रबंध और संचालन करती आ रही
___ इधर लगभग 100 वर्षों से जैन समाज का ही एक अंग दिगम्बर समाज इस ऐतिहासिक तीर्थ स्थल के प्रबन्ध में हिस्सेदारी प्राप्त करने हेतु लड़ाई के हर उल्टे-सुल्टे रास्तों को आँखमीच कर अपनाता जा रहा है जिससे दिगम्बर और
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