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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
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अ. भा. दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष साहू अशोककुमार देश के एक बड़े उद्योगपति घराने से होने के साथ ही एक बड़े समाचार-पत्र समूह - बैनेट कॉलमेन कम्पनी (जो 'टाइम्स ऑफ इण्डिया" व " नव भारत टाइम्स" आदि का प्रकाशन करती है) के मालिक हैं और जिनका थोड़ा बहुत राजनैतिक प्रभाव भी है, ऐसे व्यक्तित्व से जैन धर्म और जैन तीर्थों को जहाँ सहयोग व संरक्षण मिलना चाहिए वहां ऐसा व्यक्तित्व स्वयं विवादों में एक पक्ष बन जाये तो इससे अधिक दुःखद स्थिति और क्या हो सकती है ? यह विवेक और गहराई से स्वयं अशोकजी के सोचने की बात है ।
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श्री अशोकजी सम्मेद शिखर के प्रबन्ध में अनुचित रूप से दिगम्बर समाज को हिस्सेदारी दिलाने का नेतृत्व करने की बजाय समूचे जैन समाज में एकता की मजबूत दीवार बनाने में अपने श्रम, साधन और व्यक्तित्व का ईमानदारी से उपयोग करते तो निश्चय ही उनकी कीर्ति बढ़ती लेकिन उन्होंने स्वयं से सम्बन्धित दिगम्बर समाज को विवाद के उस चौराहे पर ला खड़ा कर दिया है जहां से समूची जैन समाज की रही-सही एकता भी सदा के लिए समाप्त होने का स्पष्ट संकेत दे रही है ।
जहाँ तक सम्मेद शिखरजी के मालिकाना हक का प्रश्न है, दिगम्बर समाज का कहना है कि बादशाह अकबर और अहमदशाह के फरमान नकली हैं तो सब से पहिले इस बात का फैसला होना चाहिए कि यह फरमान नकली हैं या असली । जरा
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