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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
पंन्यास श्री कीर्तिचन्द्र विजयजी म.सा. अनादिकालीन जैन संस्कृति को जो गौरव-गरिमा प्राप्त है उसके प्रतीक हैं-मन्दिर, मूर्ति और तीर्थ । सच बात तो यह है कि जैन संस्कृति को विकसित करने एवं प्राणवान बनाये रखने में मन्दिर, मूर्ति और तीर्थों का उल्लेखनीय स्थान होने के साथ एक प्रकार से ये सजीव आधार भी है।
जैन मन्दिर, मूर्ति और तीर्थ की पवित्रता एवं सुरक्षा को बनाये रखने की पहली और अन्तिम जिम्मेदारी है समूचे जैन समाज की । काश ! हम इसे अनुभव कर पायें । सरकारी हस्तक्षेप से इन्हें दूर रखकर ही हम इनकी पवित्रता और सुरक्षा का अपना दायित्व और धर्म निभा पायेंगे। समय की प्रबल मांग है कि हम सब को मिलकर ऐसा प्रयास करना चाहिए कि सरकारी हस्तक्षेप किसी भी कीमत पर कहीं भी पांव नहीं पसार पाये, तभी हम सही अर्थों में जैन कहलाने के अधिकारी हैं।
बहुत ही पीड़ा का विषय है कि छोटे-मोटे तीर्थों के साथ महान् ऐतिहासिक एवं विश्व प्रसिद्ध तीर्थ सम्मेद शिखरजी के प्रबन्ध में मात्र हिस्सेदारी प्राप्त करने के लालच में उलटे-सीधे रास्तों से नित्य नये झगड़ें, आँख मीच कर खड़े किये जा रहे हैं और भ्रमित प्रचार एवं प्रभाव के सहारे अपने पक्ष को वजनदार बनाने का प्रयास करना धर्म एवं समाज के साथ विश्वासघात करना है और विश्वासघात से बड़ा कोई पाप नहीं है।
हमें यह जानकर खुशी हुई कि प्रबुद्ध विचारक और सुयश प्राप्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com