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"सम्मेद शिखर- विवाद क्यों और कैसा?"
मेरा तो यही नम्र निवेदन है कि श्वेताम्बर समाज, समाज के अग्रणीय महानुभाव एवं समूचा पूजनीय साधु-साध्वीजी वर्ग स्थिति की गम्भीरता को गहराई से समझें और संगठित रूप से जागरूक हों । प्रचार के मामलें में हमारी कमजोरी का विपक्ष जिस तरह लाभ उठा रहा है उसे हर कीमत पर रोका जाना चाहिए।
जयपुर (राजस्थान )
- राजेन्द्रकुमार श्रीमाल
ता. 2 जून 1998
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• मुझे यह जानकर निश्चय ही प्रसन्नता हुई कि सम्मेद शिखर के तथाकथित विवाद के बारे में गम्भीर विचारक एवं अनुभवी- लोकप्रिय पत्रकार श्री मोहनराजजी भण्डारी से पुस्तक लिखवाकर प्रकाशित करने का निर्णय लिया है जो महत्वपूर्ण एवं सामयिक है।
निश्चय ही यह कदम वासुपूज्य स्वामी मन्दिर समिति की गहरी सूझ-बूझ का अनुकरणीय प्रतीक है और जिसके लिए समिति हार्दिक बधाई की पात्र है। महान् तीर्थ सम्मेद शिखर के तथाकथित विवाद को लेकर जो भ्रान्तियां उत्पन्न की गई है और की जा रही हैं वह बहुत ही पीड़ाजनक और जैन धर्म एवं समाज की एकता को भारी आघात पहुँचाने वाली है।
मुझे विश्वास है कि " सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?" प्रस्तुत पुस्तक, भ्रान्तियों के निवारण में एक मील का पत्थर प्रमाणित होगी । अन्तर की शुभ कामनाओं के साथ
अजमेर
ता. 21 जून 1998
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- प्रकाश भण्डारी
आर. ई. एस. जिला शिक्षा अधिकारी
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" सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?" पुस्तक प्रकाशन के निर्णय के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।
श्री अशोक जैन ने सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद को जबर्दस्ती प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाकर उल्टे-सीधे प्रचार द्वारा इतिहास को बदलने की कुचेष्टाएं की हैं और करते जा रहे हैं। अतः सत्य को उजागर करने में कोई कमी नहीं रखी जानी चाहिए।
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