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"सम्मेद शिखर-विवाद क्यों और कैसा?"
प्रबल ताकाजा है कि समूचा जैन समाज संगठित हो । लेकिन खेद और आश्चर्य है कि जैन समाज को विघटन की ओर ढकेलने में कोई लज्जा और शर्म महसूस नहीं की जा रही है।
तीर्थों के प्रबन्ध में हक प्राप्त करने का दुःखद दौर चल रहा है और वह भी गहरे भ्रामक प्रचार और राजनीतिक प्रभाव के सहारे, जो अत्यन्त निन्दनीय है।
सम्मेद शिखरजी जैसे पवित्र और विश्व-विख्यात तीर्थ के प्रबन्ध में हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिए उलटे-सीधे रास्तों से सरकारी हस्तक्षेप को आमंत्रित करना अथवा उसका समर्थन करना तीर्थों की पवित्रता और सुरक्षा को नष्ट करने जैसा महापाप है जिससे हमें हर हालत में बचना चाहिए। ____“सम्मेद शिखर विवाद क्यों और कैसा ?'' पुस्तक के आलेख की प्रतिलिपी देखकर प्रसन्नता हुई कि अनुभवी और प्रबुद्ध पत्रकार श्री मोहनराजजी भण्डारी ने अपनी इस पुस्तक में समूचे जैन समाज को सम्मेद शिखरजी के तथाकथित विवाद से परिचित कराने के साथ ही अनुचित रूप से हक प्राप्त करने की मलिन और लालची मनोवृत्ति को धर्म एवं समाज के लिए घातक बतलाया है जो सर्वथा सत्य है।
-भुवनसुन्दर विजय ता. 10 जून 1998
सूरत
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पंन्यास श्री जयन्त विजयजी म.सा. सम्मेद शिखर-विवाद निश्चय ही जैन समाज को विघटन की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com