________________
जैन विद्या के आयाम खण्ड - ६
हम कभी नहीं गिरने देगें । हे पोषक मेरे ! है शपथ हमें आपके स्नेहसिक्त सम्यक् दर्शन, ज्ञान और
चारित्र पूर्ण इस जीवन की, कि सत्य अहिंसा क्षमा आदि इन पंचव्रतों का पालन कर हम जीवन शुद्ध बनायेंगे।
तव आदर्शों की छाया में मन, वचन और काय से नित, हिंसा से कर मुक्त मही 'जियो और जीने दो'
का यह परम तत्त्व हम दुनियाँ को सिखलायेंगे ।
हे महामनस्वी ! हो आश्वस्त, कि जिन-वाणी के सत्पथ पर चल हम सब ये अंकुर
हिल-मिल कर, घन अन्धकार की छाती पर जिन-ज्ञान की ज्योति जलायेंगे । उन्मुक्त-हृदय अभिनंदन को
उद्यत हैं आश्रम के हम सब ये अंकुर हो आश्वस्त, कि सतत रहेगी जीवन्त यहाँ
शान्ति-स्नेह- समता
और जिन-वाणी के अध्ययन की निर्मल शाश्वत परम्परा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org