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काव्य-पुष्पांजली
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जैन विद्या के आयाम खण्ड
आलोकित हो जीवन सारा
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी में
प्रतिभा का उन्मेश हुआ, स्वाध्यायी सघन - साधना से, दर्शन-चिंतन व्यक्त हुआ ।
स्वाभिमान के साये में, अभिमान पनप नहीं पाया, संघर्षो की अटूट श्रृंखला, फिर भी स्वार्थ न आ पाया।
भाषा और विचारों में, सामंजस्य देखते बनता है। अभिव्यक्ति का रूप सुनहला, प्रत्येक ग्रंथ में दिखता है ।
यही तुम्हारी उपलब्धि है, यही तुम्हारी सम्पत्ति । यही तुम्हारी साहित्य साधना, यही तुम्हारी समृद्धि ॥
पुष्प खिलें जीवन के हर पल में, साहित्य साधना
सतत् रहे ।
अध्यात्म
चेतना
जाग्रत हो,
रत्नत्रय
रहे ।
का
* न्यू एक्सटेंशन एरिया, सदर, नागपुर ।
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लक्ष्य
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डॉ० श्रीमती
पुष्पलता 'जैन*
समता मानवता की रेखा, खिंची हुई है हाथों पर, कर्तव्यनिष्ठ बंधुत्व भावना, उभर गई है चेहरे पर ।
संघर्ष कसौटी जीवन की है. उसमें तुम सही उतरते हो, बीसों ग्रंथों के लेखन से, साहित्य जगत् में खिलते हो ।
आश्रम से विद्यापीठ बनाया, नूतन परिसर से चमकाया । विशाल भवन की अनेक पंक्तियों से उसको फिर महकाया ||
क्षमताओं की पूँजी बांधे, सागर की गहराई पाले । माध्यस्थ वृत्ति की छाया में, मृदुता ऋजुता को पनपाये ॥
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जीवन यात्रा अविचल होवे होवे व्याधिमुक्त काया । जलता रहे चिराग मंगलमय आलोकित हो जीवन सारा ॥
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