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जैन विद्या के आयाम खण्ड ६
श्रद्धाभिसिश्चित नमन
अ अखण्ड आनन्द की प्राप्ति हेतु बढ़ चुके हैं जिनके चरण
वि = विमलतर भावों से हो रहा जिनके पापों का हरण र = रति रूप मति का हो चुका जिनके क्षरण
न लता की भाँति सुखद और उत्तम है जिनकी शरण
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सा= सात्विक वृत्ति शान्त प्रकृति रूप है जिनका जीवन दर्पण
ध धर्म-आराधना में कर दिया अपना जीवन अर्पण
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क = कर चुके संघ-शासन- समाज सेवा में सब कुछ समर्पण
सा = सागर की भाँति गहन है जिनका जीवन दर्शन
ग = गगन की भाँति विशाल है जिनका आगम ज्ञान
=
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र रवि की भाँति देदीप्यमान है जिनका अनुपम लेखन म = मणि की भाँति चमत्कृत है जिनका साहित्य सर्जन ल लहरा रहा झंडा की भाँति जिनका गुण कीर्तन जी जीवन जीने की कला देते सदा समुचित निर्देशन सा० = साधना के आयामों का हो चुका है जिनके स्पर्शन को कोमल हृदययुत जिनका व्यवहार दर्पण के समान
=
=
सा सारभूत तत्त्वों से पूरित है जिनका प्रवचन
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द = दया दान- संयम-तप का करते हैं सदा विवेचन
र रति मात्र भी नहीं जीवन में, जिनके परिग्रह का संचयन
=
न = नम्र विनय विवेकादि विविध हैं जिनमें सगुण
- महा व्यक्तित्व के पुंज भरना हममें परमगुण
म =
न नतमस्तक हैं अन्तः तल से अभिनन्दन है विशिष्ट गुण
से ॥
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साध्वी सौम्यगुणा श्री
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