Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 222
________________ २६ - कुल जोणि-मग्गणप्राक्कस्स पदेसं प्राक्स पसं उत्ते क्खये मरणं उक्खयेण मरणं उक्खयेण मरणं आउगबंधरणभावं उगबंधाबंधरणभागो थोवो उगभागो थोवो आउ गलइ गवि मरणु गलइ उगवन्नाणं ठिदि उगवाणं ठिदिउट्टिरिक्खमस्सिरिणउट्टि लद्ध-रिक्खं कोताह कोसिंखा उट्ठ रज्जुघणं आदिबंध ज्वहिदी विमारणं आउटरज्जु सेढ आटड्ढरासिवा रं दुहारतित्थ उधवासस्स उरं आडवलेण अवट्टिदि उनले दि कालो ऊभवम्मि गाणे मत्ती आरसवंधणभावं संति सग्गहु इवि उस खये पुरणो उस जहरणट्टदि उस बंधसमये उस्सय संखेज्जा आऊ कुमार- मंडलिआऊ चप्पयारं श्राऊ चप्पयारं ऊणि पुचकोडी पुरातन जैनवाक्य-सूची वसु० सा० १५ | आऊणि भवविवाई गो० क० २११ आणि भावविवा पंचसं० ४-४६६ | आऊरिण भवविवागी आणि आहारो तेजो बुद्धी कल्लाणा० ६ समय० २४८ समय ० २४६ | आउन्येण जीवदि आऊदयेण जीर्वाद कत्ति० अ० २८ तिलो० प० ७-४ गो० क० ३५६ गो० क० १६२ पचसं० ४-४६० जोगसा० ४६ लद्धिसा० ७८ | ऊ पडि गिरयदुगे भ० श्रारा० ६२७ तिलो० प० ६-१०१ सावय० दो० ७३ शियमसा० १७५ श्राऊ परिवारिड्ढीआऊ पल्लदसंसो आऊ बंधरणभावं आऊ बंधणभावं आऊ बंधरणभावो लद्धिसा० ४०३ तिलो० सा० ४३० तिलो० सा० ४२६ तिलो० प० ४-१८३८ तिलो० प० ४-१८४४ तिलो० प० ११८६ गो० क० ६४७ जबू० प० ११-३५० | तिलो० सा० १३६ गो० जी० २०३ | आक्वणी कहाए गो० क० ३६७ | आक्खेवणी कहा सा भ० श्रारा० ११३६ | आक्खेवणी य संवे गो० क० १८ आगच्छिय दीसरकम्म० १६ | आगच्छिय हरिकूडे तिलो० प० ५-२६० आगमकदविणारा श्राय० ति० २५-१ आएग य पाएग य आए गार्याम्म वि जो एसस्स तिरत्तं एसस्स तिरत्तं एस एज्जंतं आसं एज्जंत कंपिय अणुमा रिय कंपि प्रमाणिय कंसिकमदिघोरं आगमचक्खू साहू आगम-णोश्रागमदो आगमदो जो बालो आगमपुवादिट्ठी आगममाह गो० क० ६५३ श्रागमसत्थाइं लिहा तिलो० प० २-२६३ आगमसुदाणाधागो० क० ६३६ आगमहीण समो तिली० प० ४ - १२१२ | आगरसुद्धिं च करेज्ज भावस० ३३५ आगंतुकरणामकुलं कम्मप० ३२ | अगंतुक मारणसियं जबू० प० २ - १७५ | आगंतुगवत्थव्वा श्रा गो० क० ४८ कम्मप० ११६ पचसं० ४-४८६ तिलो० प० ६-३ तिलो० प० ४- १५६३ समय० २५१ समय० २५२ लदिसा० ११ तिलो० सा० २४२ तिलो० सा० ७६६ तिलो० प० ४-४ तिलो० प० ७ - ६१८ तिलो० प० ६-४ प्राय० ति० ३-१ थाय० ति० २-१ मूला० १६२ भ० श्रारा० ४१३ भ० श्रारा० ४१० मूला० १६० भ० श्रारा० १६२ मूला० १०३० तिलो० प० ४-४२३ अंगप० १-५६ भ० श्रारा० ६५६ भ० श्रारा० ६५५ तिलो० प० ५-६६ तिलो० प०४-१७६६ मूला० ८३१ पवयणसा० ३-३४ दव्वस० गाय० २७६ भ० श्रारा० ५६८ पवणसा० ३-३६ भ० श्रारा० ६५६ वसु० सा० २३७ भ० श्रारा० ४४६ पवयणसा० ३-३३ वसु० सा० ४४५ मूला० १६६ भावपा० ११ भ० धारा ४११

Loading...

Page Navigation
1 ... 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519