Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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पुरातन-जैनवाक्य-सूची
बलरिद्धी तिविहायो तिलो० ५० ४-१०५६ | बहुतोरणदारजुदा तिलो. प०४-१७०६ बलविक्कममाहापं जंवू० ५० ७-१४३ बहुदिन्वगामसहिदा तिलो. ५०४-१३४ बलवीरियमासेज य
मूला० ६६७ बहुदुक्खभ यणं कम्म- रयणसा० ११८ बलसोक्खणाणदंसण भावपा० १४८ बहुदुक्खावत्ताए
भर धारा० १७६० बलि किउ माणुस-जम्मडा परम० प० २-१४७ बहुदेवदेविणिवहा जबू०प०६-१४६ बलि-गंध-पुप्फ-अक्खय- जब० ५० ५-८२ | बहुदेवदेविपउरा जबू०प०१२-११० बलितिलएहि जुवरेहिं(?) य वसु० सा० ४२१ बहुदेवदेविपुण्णा जवृ० प०४-१७६ बलिधूवदीवणिवहा जंबू० प०६-१८६ बहुदेवदेविपुण्णो
जबू०प०८-१ बलियसरियम्मि पाए श्रायति० ६-७ | बहुदेवदेविसहिदा तिलो० प० ४-६६६ वलिया हुंति कसाया
ढाढसी०६ बहुपरिवारहिं जुदा तिलो० प०४-१६५० बहलतिभागपमाणा तिलो० ५० ६-११ | बहुपरिवारहिं जुदो तिलो०प०४-१७१० बहलत्ते तिसयाणं तिलो० ५० ३-२६ बहुपरिसाडणमुज्मि
मूला० ४७५ वहिणिग्गएण उत्तं
भावस० १६२ बहुपावफम्मकरणा भ० श्रारा० १३०५ बहिरत्थे फुरियमणो
मोवपा०८ बहु बहुविहाखिप्पेसु य जवू० प० १३-७१ बहिरभंतरकिरिया
दन्वमं० ४६ बहु बहुविहं च खिप्पा म गो० जी०३०६ बहिरमंतरगंथविमुक्को रयणसा० १५२ बहु बहुविहं च खिप्पा अगप० ३-६४ बहिरभंतरगंथा
तसा.. बहुभवणसंपरिउडा जंबू०प०६-१४५ बहिरन्तरतवसा
भावसं०५०८ बहुभव्वजणसमिद्धी जंव०प०-६२ बहिरंतरगंथचुवा(आ) भावसं० १२३ बहुभागे समभागो
गो० क० १६५ वहिरंतरप्पभेयं रयणसा० १४८ बहुभागे समभागो
गो० क० २०० बहिरंधकाणमूया जबू०प०२-१६३ बहुभागे समभागो
गो० जी० १७८ बहिरा अंधा काणातिलो० प०४-५५३७ बहुभा(भ)वणसंपरिउडो जब० ५० ६-१७२ बहुअच्छरपरिपरिया जव० प० ७-१०७ बहुभूमीभूसणया तिलो० प० ४-८५० बहुअच्छरेहिं जुत्ता जंब० प० ११-१३२ बहुभूमीमूसरणया
तिलो०प०१-३० बहुआरंभपरिग्गहधम्मर० १६ बहुभूसणेहि देहं
धम्मर० १७१ वहुकव्वडेहिं रम्मो जब० प०१-११६ बहुयइँ पढियइँ मृढ पर
पाहु. दो०६७ बहुकुसुमरेणुपिंजर- जंबू० प० ३-१४ । बहुयंघयारसीयं
आय. ति०१६-७ बहुगदरं बहुगदर कसायपा० ६१ (5) बहुयाण एगसहे
सम्मइ. ३-४० बहुगं पि सुदमधीदं
मूला० ६३३ । बहुरयणदीवणिवहो जब० ५०८-२० बहुगाण संवेगे
भ. श्रारा० २४३ वहुलट्ठमीपदोसे तिलो० ५० ४-१२०४ बहुगुणसहस्सभरिया भ० श्रारा १४६४ / बहुवएणणपासादा तिलो. सा०६११ बहुगे बहुविहभेदे जंबू० प०१३-७५
गो० जी०३१० बहुछिदं णिवडतं रिट्ठस० ५३ | बहुवरणा वट्टवय्यड(१)
आय. ति०१-४२ बहुजम्मसहस्सविसा- भ० श्रारा० १७६२ बहुवारे गुरुमासो
छेदपिं० १५७ बहुजादिजूहिकुजय- जंबू० प०३-२०६ बहुवारेसु य छेदो
छेदस० १२ बहुठिदिखडे तीदे लद्धिसा० ५६८ वहुवारेसु य पणगं
छेदपि०१२ बहुणगीयसाला धम्मर० ६१ बहुवारेसु य पणगं
छेदपिं० १५६ बहुतसरमणीयाई तिलो०प०४-२३२१ बहुतससमरिणदं जं कत्ति० अणु० ३२८ | बहुविजयपसत्थीहिं।
तिलो०प०४-१३५० बहुतिव्वदुक्खसलिलं भ० श्रारा० १७६६ | बहुविविहपुप्फमाला
भ० भारा० १०६५
जब० ५० ४-५६

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