Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 502
________________ ३०८ होऊण भणो सो - होऊण भोगभूमि होऊण महडूढी होऊण यस्सिंगो होऊण रिऊ बहुदुक्खकारो भ० प्रा० १८०५ हो सुई चेइयहज्ज दिगम हो जमलंभो पुरातन जैनवाक्य-सूची तिलो० प०४-२६३० तिलो० प०८-६८६ गो० जी० ६२६ तिलो० प०२-२७६ भ० श्रारा० १८०७ | होहइ इह दुभिक्ख जंबृ० प० २ - २०५ |होही थिरम्मि भरिए भ० रा० १८०३ | होति प्रजीवा दुविहा बा० ० ७६ होंतिणियट्टिण ते होति अणियट्टिणो ते वसु० सा० २७४ | होति श्ररिणयट्टिको ते मूला० ११५६ | होति अवज्झादिसु रणवमूला० ११५८ | होंति श्रसंखा जीवे सम्मइ० ३ - १६ | होति श्रसंखेज्जगुणा गो० जी० ३८८ होंति असंखेज्जा लद्धिसा० ४८२ होंति खवा इगिसमये तिलो० प० ८ - १०७ | होंति णपुसंयवेदा भ० श्रारा० १३३१ | होंति तिविदुविट्ठा अंगप० १-४२ | होति दहा मज्झे होंति पयहुदी होंति पइरणय पहुदी होति पढाणीया होंति परिवारतारा ति महादेव व भ० श्रा ० ६१३ होति य मिच्छादिट्ठी तिलो० प० ४ - १८६५ | होति यमोघ संधि (सत्थि ) य - तिलो०प०५ - १५३ तिलो० प० ८ - ३४६ | होति सहरसा वारस तिलो० प० ४-११६५ तिलो० प० ७-५३८ | होंति हु असंखरामया तिलो० प०४-२८६ तिलो० प० ८-३०० होति हु ईसार दिसा - तिलो०प०५-१७३ भ० श्रारा० ८४४ ति हुता वाणि समय० १७५ । होति हु वरपासादा तिलो० प०४-१४१० तिलो० प० ४ - २०१० तिलो० प० ५ - १६८ तिलो० प० ३-८१ तिलो० प० ४-१६८६ तिलो० प० ४ - १३६० | तिलो० प० ७-४७३ मूला० २१७ जबू० प० ११-८२ जब० प० २-१६२ इदि सम्मत्ता होजाहि दुगुणमहुरं होदि तिमभागो होदि असंखेज्जगुणं होदि असंखेज्जाणं होदि कसाउ (यु) म्मत्तो होदि गरिणच कििमह वप्पहोदि गिरी रुचकरो होदि दुर्गुछा दुविहा होय र तिव्वा होदि [य] दिवडूढरयणी होदि दिल्ली होदि सचक्खू विचक्खु होदि सभापुरपुरदो होदि सहस्सारुत्तर दिसाए होदि हु पढम विसु होदि हु सयं पक्खं दु सिहंडी व जडी होदू रिवभोज्जा मूला० ६५३ भ० रा० १५६५ जबू० प० ११-३२ भावस० १३० श्राय० वि० ११-६ भावस० ३०३ पचस० १-२१ गो० जी० ५७ गो० क० ६१२ तिलो० प० ७ - ४४४ दव्वसं० २५ तिलो० प०५-२८८ तिलो० प० ४-२७३

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