Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 500
________________ ३०६ पुरातन-जैनवाक्य-सूची हमबहुगमपदक्खा जंबू० प०३-८१ हिमवंतपव्यदस्स य तिलो० ५० ४-१७२३ हंसम्मि चदधवले तिलो० ५० ५-८८ हिमवंत-महाहिमव जय० प०३-२ हाएदि किण्हपक्खे तिलो० ५० ४-२४४२ | हिमवत-महाहिमवंत- तलो०प०४-१४ हाणादाणवियारविही- रयणसा० ८५ हिमवतयस्स मज्झे तिलो. प० ४-१६५६ हाणि-चयाण पमाण तिलो० प० २-२१६ हिमवंतयंतमणिमय- * तिलो० ५०४-२१३ हा मणुयभवे उप्पजिउण वसु० सा० १६२ हिंमतयंतमणिमय-* जब० ५० ३-१४८ हा मुयह मम(झ) परिहर वसु० सा० १४१ | हिमवतसरिसदीहा तिलो० ५० ४-१६२७ हारदुगं वज्जित्ता श्रास. ति० ३१ हिमवतसिहरि सेला जं० ५० ३-३ हारदु सम्म मिच्छं गो. क० ३५० हिमवंतस्स दु मूले जंब० ५०३-२२७ हारदुहीणा एवं गो० क. ३०३ हिमवंताचलमज्झे तिलो० ५०४-११५ हारविराइयवच्छा जंबू० ५० २-१६१ | हिमवं महादिहिमवं तिलो० सा० ५६५ हारविराइयवच्छा जबू० ५० ४-२७४ हियकमलिणि ससहरधवल सावय. दो० २१३ हारविराइयवच्छा जबू०प०६-७७ हियडउ कित्तिउ दसदिसि धावइ सुप्प० दो० ७० हार अधापवत्त गो० क० ४३१ हियमियपुज्ज सुत्ता- वसु० सा० ३२७ हारिउ तें धणु अप्पणउ सावय० दो० ८४ | हियमियमरणं पाणं _रयणसा० २४ हास-भय-लोभ-कोहप्प- भ० श्रारा० ८३३ | हिवडा काइँ चडफड. सुप्प० दो० १३ हास-रइ-पुरिसवेयं पंचस०४-३१७ | हिवडा काइँ चडप्फड सुप्प० दो० ४८ हास-रइ-भय-दुगुंछा पंचस० ४-४६४ | हिवडा मडवि घरु घरिणि सुप्प० दो० ४६ हासोवहासकीडा म. आरा० १०६० हिवडा संवरि धाडी सुप्प० दो० १४ हा हा कहं णि लोए(ो ?) वसु० सा० १६५ हिंगुलपयोधिदीवा तिलो०प०५-२५ हाहा-च उसीदिगुणं तिलो० प० ४-३०३ | हिंडाव(वि)जइ टिंटइ वसु० सा० १०७ हा हामा हामाधिक्कारा तिलो० सा० ७६८ | हिंसं अलियं चोज्जं भ० श्रारा० १३७३ हाहा हूहू पारद- तिलो. प० ६-४० | हिंसा असच्च मोसो दवस० गय०३०६ हाहा हूहू गारय- तिलो० सा० २६३ हिंसाइदोसजुत्तो भावस०५५३ हिअयमणोगयभावं जबू० ५० १५-२६६ हिंसाइसु कोहाइसु रयणसा० ६२ हिट्ठा(?) मज्झे उबरिं मूला० ७१४ हिंसाणंदेण जुदो कत्ति० अणु. ४७३ हिट्ठिम-मझिम-उपरिम- कत्ति० अणु० १७१ | हिंसादिउ परिहारु करि जोगसा० १०. हिट्ठिम-मज्झिम-उवरिम- तिलो. सा. ४५५ हिंसादिएहिं पंचहिं मूला० ७३६ हिदमिदपरिमिदभामा मूला० ३८३ | हिंसादिदोसमगरादि भ० श्रारा० १७७० हिदमिदमधुरालावा(ओ) तिलो० ५० ४-८६६ | हिंसादिदोसविजुदं मूला० ३१३ हिदमिटवयणं भासदि कत्ति० अणु० ३३४ | हिंसादो अविरमणं भ० श्रारा०८०१ हिदयमहाणंदाओ तिलो हिंसारहिए धम्मे * मोक्खपा० १० हिदि होदि हु दन्वमणं गो० जी० ४४२ | हिंसारहिए धम्मे * भावस० २६८ हिमइंदयम्हि होति हु तिलो० ५००-१२ | हिंसारंभो ण सुहो कत्ति० अणु० ४०५ हिमगा(गे) णीला पंका तिलो० सा १६२ | हिंसावयणं ण वयदि कत्ति० अणु० ३३३ हिमजलणसलिलगुरुयर- भावपा० २६ / हिसाविरइ अहिसा चारित्तपा० २६ हिमणगपहुदीवामो तिलो. सा० ७६८ हिंसाविरई सच्चं भावस० ३५३ हिमणिंचओ वि व गिहमय-भ० श्रारा० १७२७ हिंसाविरदी सच्चं हमवण्यागत जीवा तिलो० सा० ७७२ / हीणो जदि सो आदा पवयणसा० १-२५ हिमवद्दललल्लक्क जंब० प० ११-१५५ । हयवहिणाइ ण सक्कियउ पाहु० दो० १४६ ४-७८५ मूला०४

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