Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
View full book text
________________
प्राकृतपद्यानुक्रमणा
२६५
विमलटुगे वच्छादी- तिलो० सा० ७४२ | विरलिदरासिच्छेदा तिलो० सा० १०८ विमलपहक्खो विमलो तिलो० प ०५-४३ विरलिदरासीदो पुण तिलो० सा० ११० विमलपहविमलमज्झिम- तिलो. प०८-८ विलिदरासीदो पुण तिलो० सा० १११ विमलयरगुणसमिद्धं श्रारा० सा० १ विरलो अज्जदि पुराण कत्ति० श्रगु० ४८ विमलविहूसियदेहो श्राय० ति० २५-५ विरहेण रुवइ विलवह भावस० २२७ विमलस्स तीसलक्खा तिलो. प० ४-५६८ विरियस्स य णोकम्म
गो० क० ८५ विमला णिच्चालोका तिलो० ५० ५-१७७ विरियतरायखीणं जंय० प० १३-१३५ विमला-हेदुं वंकेण - भ० 'पारा० १८०६ | विरियंतरायमलसत्त- भ० श्रारा० १४५४ विमले गोदमगोत्ते तिलो० ५० १-७८ विरियेण तहा खाइय- तिलो० ५० १-७३ विम्हयकररूवाहिं तिलो० प० ४-१८५६ विलवंतहुँ सुप्पहु भणइ सुप्प० दो० ७२ वियडाए अवियडाए भ. धारा० २२६ विलसंतधयवडाया जंव० ५० ११-२३४ वियडितणकट्टचालण छेदपिं० १०१ विवरं पंचमसमए पघसं० १-१६८ वियडि तिण कट्ट वा
छेदपिं० २०८ विवरीए फुडबंधो दव्वस०णय० ३४० वियलचउक्के छह कम्मप० ८८ विवरीयमयं फिच्चा
दसणसा० १७ वियला वितिच उरक्त्वा तिलो० ५० ५-२७६ विवरीयमूढभावा
वोधपा०५३ वियलिदिए असीदी
भावपा०२१ विवरीयमोहिणाण पचस० १-१२० वियलिदिए असीदी
फ्लाणा०६ | विवरीयमोहिणाण गो० जी० ३०४ वियलिदिएसु जायदि कति० अणु० २८६ | | विवरीयं पडिकूलो आय० ति० २-१ वियलिंदिपसु तीसु वि पघस० ५-४२५ | विवरीय पडिहएणदि लद्धिसा० ३08 वियलिंदिएमु ते च्चिय पचसं०५-२७३ | विवरीयाभिणिसचि- णियमसा० ५१ वियलिदिय णिरयाऊ पचस० ४-३७१ विवरीयाभिणिवेसं णियमसा० १३६ वियलिंदिय पंचिंदिय ____ ढाढसी० २ | विवरीयेणप्पदरा
गो० क० ५६६ वियलिंदियसामरणे पचस० ५-१२० विविगुणइढिजुत्तं ४ पचस० १-१५ वियलिंदियाण घादे
छेदपिं० ३२१ | षिविहगुणाइढिजुत्तं - गो० जी० २३१ वियसियकमलायारो तिलो. प० ४-२०६ विविहतवरयणभूसा तिलो० सा० ५५५ विरए खोवसमए पचस० ५-३०५
तिलो०प०१-५३ विरदाणमुत्तमलहरणस्स छेदपिं० ३०४ विविहरतिकरणभाविद- तिलो० ५० ३-२३, विरदाणं पि महन्वय- छेदपि. ३२२ | विविहरसोसहिभरिदा तिलो० प० ४-१५६० विरदाविरदे जाणे पंचसं०५-४०४ विविह्वणसंडमंडण- तिलो० ५० ४-८०२ विरदीओ वसुपुज्जे तिलो ०५० ४-११६६ विविहवररयणसाहा तिलो० प० ३-३५ विरदीय अविरदीए कसायपा० ८३(३०) विविहवररयणसाहा तिलो० प० ४-१६०५ विरदी सव्वसावज्जे णियमसा० १२५ विविहवियप्पं लोयं तिलो० प० १-३२ विरदो व सावओ वा
छेदपि० २६ | विविहंकुरुचेंच इया तिलो० प० ३-३६ विरदो सव्वसावज्ज
मूला० ५२४ विविहाइं गच्चणाई तिलो० प०५-११४ विरयाविरए जाणसु पचस० ५-३७८ विविहाओ जायणाओ भ० श्रारा० ११६६ विरयाविरए णियमा पचस० ५-३२७ विविहाहिं एसणाहिं म० श्रारा० २४८ विरयाविरए भगा
पचसं० ५-३७१ विश्वोगतिक्खदतो भ० श्रारा० १११४ विरला जाणहिं तत्त बुह ___ जोगसा० ६६ / विसए विसएहिं जुदा जब० प०१३-५७ विरला णिसुगहि तच्चं कत्ति० अणु० २७६ | विसएसु पधावंता
मूला० ८७३ विरलिज्जमाणरासिं तिलो० सा० १०७ | विसएसु मोहिदाणं
सीलपा० १३

Page Navigation
1 ... 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519