Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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स
तत्थं संतो
सुत्तमिव साई सुत्तम्मिजं सुदिनं
तहा
सुता सुत्तं श्रत्थमेणं
सुत्त गणधरकधिदं
सुत्तं गणहरगथिदं
सुत्त जिणोदि हिजो
सुत्तादोतं सम्म सुत्तादो त सम्मं सुत्तादो त सम्मं तो दोस
खुद केवलं च गाणं सुदाभासं जो सुदरपारणभावणाए सुदाणं श्रत्थादो
सुदारणं केवलमवि सुदपरिचिदाभूदा
सुभावणाए खाणं
सुदरयणपुरणकरणा सुदिपाए सहिसुद्धखर भूजलाणं x सुद्धखरभूजलाणं x सुद्धया पुण गाणं सुद्धये चरखंधं सुद्धपएसहॅ पूरिय सुद्धा अरु जिणवरहॅ सुद्धप्पा त माणो सुद्धम्मिश्रणपणे
सुद्धस्स य सामरणं
प्राकृतपद्यानुक्रमणी
छेदस० ६६ सुद्धो जीव सहावो सम्मइ० २- ७ | सुद्धोदरा सलिलोदणसुतपा० २ | सुद्धो सुद्धादेसो
सुद्धस्सामा रक्खससुद्धहॅ संजमु सील त सुद्धवियात सुबजोगेण पुणो सुद्ध सचेणु बुद्धु जिरणु सुद्धे सुद्धे य सुद्धे सम्म विरदो सुद्ध कम्यादो सुद्धो खाइयभावो
वसु० सा० २८८
सम्मइ० ३-६४
मूला० २७७ भ० श्रारा० ३४
सुपइरणा जसधरया सुपइएगा य जसोहर सुपढंतु पाढयंतु य सुपरिक्खि
तम्हा
२६७
दव्वस० य० ११४ तिलो० प० ४ - २४६६
समय० १२
तिलो० प० ५-१५२
तिलो० सा० ६५१
ढाढसी० २६
भावम० २२३
प० ४ - २१८२
सुप्प० दो० १६
सुप्प० दो ७ सुप्प० दो० ३ सुप० दो० ५६
सुप्प० दो० १८ सुप्प० दो० २३
सुप्प० दो० २
पवयणसा० १-३४ | सुप्पहव (थ) लस्स विडला तिलो०
सुत० ३ | सुप्पहु पुत्त कलत्त जिम
श्रगप० ३-४०
समय ० ४
भ० श्रारा० १६४
भ० श्रारा० ३३ सुप्पहु भइ मा मेलि जिय दिसा० १०६ सुप्पहु भाइ मा परिहरउ गो० जी० २८ सुप्पहु भाइ मुणी सरहु छेदपिं० ५६ | सुप्पहु भाइ रे जीव सुणि गो० जी० ३६८ | सुप्पहु भाइ र दविलास (१) रयणसा० ६८ | सुप्पहु भाइ रे धम्मियहु तिलो० प० १-५० सुप्पहु भाइ रे धम्मियहु अगप० २-६५ | सुप्पहु भाइ रे धम्मियहु सु'पहु वल्लहमरणदिणि बहुदा वसंता सुबहुस्सुदो वि श्रवमामूला० ८३३ | सुभजोगेण सुभावं भ० श्रारा० ४३६ | सुभायरे अवरहं तिलो० प० ५ - २८० | तिलो० सा० ३२८ सुभम सुभसुहयसुस्सरभ० श्र० ५ | सुभम सुभं चिय कम्मं धारा० सा०८ सुमइजिदि पर मिय जोगसा० २३ | सुमणसणामे उपतीजोगसा० २० सुमास तह सोमणसं गाणसा० ४५ | सुमास सोमणसाए छेदपिं० १६१ सुम सहिए [] वल्लहपवयणसा० ३-७४ सुमरणपुखा चिंतावेगा तिलो० प० ६-५७ | सुमरे वि पुव्वकम्मे परम० प० २-६७ सुमिरणम्मि अचंतो
समय ० १८६ | सुयकेवलि पंच जणा वा० श्रणु० ६४ | सुयकेवलीहि कहिय जोगसा० २६ | सुयणो पिच्छतो वि हु छेदपिं० ७६ सुयदारणेण य लव्भइ
भ० थारा० १६३८
भ० श्रारा० ७४० | सुयभत्तीए विसुद्धा दव्वस० य० ३५६ | सुयमुणिविरगमियचलणं
भावति० ४४
भावस० ६६८ | सुयवृत्त ( सयवत्त) कुसुम कुवलय- वसु० सा० ४२६
सुप्प० दो० ६
सुप्प० दो० २४
सुप्प० दो० ७४
भ० श्रारा० ६१६
भ० श्रारा० १३४१
मोक्खपा० ५४
तिलो० प० ७-४४१
सुभद्दं (दो) च जसोभद्दं (दो) गंदी० पट्टा० १३
पचस० १-१७५
दव्वस० णय० ३३८
जबू० प० ४-१ तिलो० प०८-५०७ जंबू० प० ११-३३६ तिलो० प० ८-१०६
धम्मर० १८३
भ० श्रारा० १३६६
जवू० प० ११-१६६
रिट्स० १२८ दी० पट्टा० ४
दव्वस० य० ४१६ कत्ति० अ० ७७
भावस० ४६१

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