Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 471
________________ प्राकृतपद्यानुक्रमणी २७७ समण गणिं गुणड्ढं पवयणसा०३-३ | समाहियतिभागजोयणा- जंबू०प० १०-१६ समण वंदेज्ज मेधावी मूला० ५६५ | समहियदिवड्ढकोसा जंवू०प०७-८६ समणा अमणा णेया दन्चस० १२ समहियदिवड्ढकोसा जवू० ५०८-१८३ समगाणं ठिदिकप्पो भ० श्रारा० १६६७ समहियसोलसजोयण- जवृ० १०५-२० समणा सराय इयरा दन्वस० गय० ३४६ समिदकदो घदपुण्णो भ० श्रारा० १००६ समणा सुद्धवजुत्ता पवयणसा. ३-४५ समिदा पचसु समिदीसु भ० श्रारा० २६७ समणे णिच्चलभूये तञ्चसा० ७ भ० श्रारा०१८४१ समणो त्ति संजदो त्ति य मूला० ८८६ समिदिदियखिदिसयणे छेदस० ५४ समणो मे त्ति य पढमं मूला०६८ समिदीसु य गुत्तीसु य भ० श्रारा०१६ समताल कसतालं जंबू०प०४-२५६ समिदीसु य गुत्तीसु य भ० श्रारा० १९५३ समदा तह ममत्थं दवस० णय० ३५४ समुदाएण विहारो भावसं० १२६ समदा थो य चंदण मूला० २२ सम्म गुण मिच्छ दोसो मोक्खपा०६६ समदा सामाचारो मूला० १२३ सम्मगु पेच्छड जम्हा दव्वस० णय० ३६८ समधाऊ वि रा गिरहइ रिट्टस. १३३ सम्मन्निऊण सयमवि। रिट्टस० १४४ समभूमिय लेट्ठिच्चा रिट्टस० ६७ सम्मरणाणे णियमेण सम्मइ० २-३३ समयजुददोरिणपल्लं तिलो० ५० ५-२८६ सम्मत्त अभिगदमणो जबू०प०१३-१६१ समयजुदपल्लमेक्कं . तिलो. प०५-२८८ सम्मत्तगहणहेदू तिलो० ५० ५-४ समयजुदपुचकोटी विलो०प०५-२८७ | सम्मत्तगुणणिमित्तंx पचस०३-१४ समयहिदिगो बधो * गो० क. २७४ सम्मत्तगुराणिमित्त ४ पचस०४-३०४ समयट्ठिदिगो बंधो * लखिसा० ६१३ सम्मत्तगुणणिमित्तं ४ पचस० ४-४८३ समयत्तयसखावलि गो० जी० २६४ सम्मत्तगुणपहारणो कत्ति. अणु० ३२६ समयपबद्धपमाणं गो० क. ६४२ सम्मत्तचरणसुद्धा चारित्तपा. समयपरमत्थवित्थरसम्मइ०१-२ सम्मत्तचरिमखंडे लद्धिसा० १४० समयं पडि एकक तिलो० ५० १-१२७ सम्मत्तणाणअजब- तिलो. प०८-५५८ समयावलि उस्सासो दव्वस० णय० १३८ सम्मत्तणाणचरणे णियमसा० १३४ समयावलिउस्सासा तिलो. प०४-२८४ सम्मत्तणागजुत्तं पचत्थि० १०६ समयावलिभेदेण दु णियमसा० ३१ सम्मत्त णाण दसण * चसु० सा० ५३७ , समयूणा च पविट्ठा कसायपा० २३१(१७८) सम्मत्त गाण दसरा * भावसं०६४ समरे विसखरकरिगो आय. ति० १५-६ सम्मत्त गाव दंसण * धम्मर० १६२ समवट्ठवासवग्गे तिलो० ५० १-११७ | सम्मत्तणाणदंसा सीलपा०३४ समवत्ती समवाओ पचत्थि० १० सम्मत्तणाणदसणा दसणपा०६ समवसरणपरियरियो सुदख०७ सम्मत्तणाणरहिओ मोक्खपा० ७४ समवाओ पचण्हं पंचस्थि०३ / सम्मत्तणाणसंजम मूला० ५१६ समवायंग अडकदिअंगप० १-२६ । सम्मत्तदेसघादिस्सु गो० जी० २५ समवित्थारो उवरिं तिलो० ५०४-१७८७ | सम्मत्त देसविरयी कसायपा० १४(२) समविसमट्ठाणाणि य गो० क० ६२५ सम्मत्तदेससयलचरित्त-+ गो० जी० २८२ समवेदं खलु दव्वं पवयणसा०२-१० सम्मत्तदेससयलचरित्त-+ कम्मप० ६१ समसत्तुबंधुवग्गो पवयणसा० ३-४१ सम्मत्तदेससयम पंचसं०१-११० समसतोसजलेण य कत्ति० अणु० ३६७ | सम्मत्तपडिणिबद्ध समय०१६१ समसुद्धभूपएसे रिहस० ७२ | सम्मत्तपढमलंभस्सा- कसायपा० १०१(४८)

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