Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 470
________________ २७६ पुरातन-जैनवाक्य-सूची सद्दवियारो हो बोधपा० ६१ | स(त)पिंडअट्टलक्खेसु तिलो० ५० ४-२८२७ सहव्वरओ सवणो मोक्खपा० १४ | सप्पबहुलम्मि रण्णे भ० श्रारा० ११६६ सहव्वं सच्च गुणो पवयणसा०२-१५ सप्पंडयाणमुवरि छेदपिं० ४० सद्दव्वादिचउच्के + णयच०२५ सप्पिं मुक्की कंचुलिय पाहु० दो० १५ सहव्वादिचउक्के + दवस० गय० १६७ रयणसा० २६ सदहाइ सस्सहावं श्रारा० सा०६ तिलो. सा. २६० सदहणासदहण ४ पचस०१-१६६ सबलचरित्ता कूरा तिलो० ५०८-५५५ सदहणासदहणंx गो. जी. ६५४ | सम्भंतमसम्भंतो जवू १०११-१४७ सदहदि य पत्तेदि यs भाषपा० ८२ सम्भावमणो सच्चो गो० जी० २१७ सद्दादि य पत्तेदि यs समय० २७५ सम्भावसभावाणं पंचयि० २३ सदाउलिय बहुजण श्रंगप०३-३७ सम्भावं खु विहावं दवस. य०१८ सद्दारूढो अत्थो * गयच०४२ सभावासम्भावा वसु० सा० ३८३ सद्दारूढो अत्यो * दव्वस० णय० २१४ सम्भावाऽसम्भावे सम्मइ०१-४० सदावदि गंडावदि जवू० ५०३-१०८ सम्भावे आइहो सम्मा० १-३६ सहेण मओ रूवेण भ० श्रारा० १३५३ भावसं० २६१ सहे रूवे गंधे म. धारा०५२३ | सम्भावो सञ्चमणो पंचस० - सद्दे रूवे गंधे भ० श्रारा० ५४१३ | सम्भावो हि सहावो पवयणसा०२-१ सद्देसु जाण णाम दवस० गय० २८० सन्भूदमसत्भूदं ५ दवस० गय० १८७ सदो खधप्पभवो पंचस्थि० ७६ सम्भूयमसम्भूयं : गयच०१५ सदो गाणं ण हवइ समय०३६१ | समऊ(यू)पदोरिणावलि- लद्धिसा० ४५८ सद्दो बंधो सुहुमो दवसं० १६ | समऊ(यू)णेक्कमुहत्तं तिलो० ५० ४-२८८ सदो हवेह दुविहो रिट्ठस. १८० | समए समए भिरणा लद्धिसा० ३६ सद्धाण-णाण-चरणं दव्वस० गय० ३७१ समो णिमिसो कट्ठा पंचयि० २५ सद्धाण-णाण-घरणं दव्वस० णय० ३७८ समओ दु अप्पदेसो पवयणसा०२-४६ सद्धा तच्चे दंसण दव्वस० गय० ३२० अंगप०१-३३ सद्धा भगती तुट्ठी वसु० सा० २२३ / समओ हु वट्टमाणो गो० जी० ५७८ सधणो वि होदि णिधणो कत्ति० अणु० ५६ / समकदिसल विकदीए तिलो० सा०६३ सपएस पंच कालं वसु० सा० ३० | समखंडं सविसेसं लद्धिसा० ४६६ सपडिक्कमणं मासिय छेदस० ५७ ।। समचउरवज्जरिसहं गो० ० ४२ सपडिक्कमणुववासदिवसे छेदपि०१६ ! समचउरस णिग्गोहं कम्मप०७२ सपडिक्कमणो धम्मो मूला० ५२६ । समचउरस-णिग्गोहा सपदेसेहिं समग्गो पवयणसा०२-१३ समचउरस वेउब्विय पंचसं०३-२३ सपदेसो सो अप्पा पवयणसा० २-८६ समचउरससंठाणो सपदेसो सो अप्पा पवयणसा० २-६६ | समचउरसं ठिदीणं तिलो०प०६-६३ सपयत्थं तित्थयरं पंचत्थि. १७० समचउरस्सा दिव्वा जबू० प०१७-२१३ सपरणिमित्तपउंजिदछेदापि ५ समचउरं ओरालिय पंचस०५-१७४ सपरं बाधासहियं पवयणसा० १-७६ / समचउरं पत्तेयं पंचसं०५-१८३ सपराजंगमदेहा बोधपा० १० समचउरं वेउव्विय पंचसं० ४-३१६ सपरावेक्खं लिंगं मोक्खपा०६३ | तिलो.सा. ३० सपरिग्गहस्स अब्बंभ- भ० पारा० १२४५ | समयमुहुग्गदमहें पचस्थि०२ मूला० १०६० वसु० सा० ४६७ +

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