Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 424
________________ २२८ पुरातन-जैनवाक्य-सूची भ वेरूववगधारा तिलो० सा० ६६ / भत्तपइण्णा-इगिणि गो० ० ५६ बेख्वविंदधारा तिलो० सा० ७७ / भत्तपइएणा-इंगिणि मूला० ३४६ बे-लक्खा परणारस- तिलो. ५० ४-२०१८ भत्त खेत्त काल म०पारा० २२५ वे सत्त दस य चोइस मूला० १११६ / भत्त देवी चंदप्पह गो० जी० २२२ वे सत्त दस य चोदस* जंबू०प० ११-३५३ / भत्तं राया सम्मदि अंगप०२- बे-सद-छप्पएणंगुल- गो० जी० ५४० / भत्तादीणं भत्ती भ. श्रारा०६६ बे-सद-छप्पएणंगुल- तिलो. सा० ३०२ | भत्ति-च्छि-राय-चोरकहाप्रो बा० अणु० ५३ वे-सद-छप्परणाई तिलो० प० ४-१६०२ भत्ति-स्थि-(च्छि)राय-जणवद- भ० श्रारा० ६५१ वे-सय-छप्पण्णाणि य पचसं०५-३३५ भत्तीए पासत्तमणा जिणिंद- तिलो०५०४-१३६ बे-सागरोवमाई जंवू० ५० १७-२५२ भत्तीए जिणवराण मूला० ५६६ वे-सायरोवमाई जवृ० ५० १५-२०० भत्तीए पिच्छमाणस्स वसु० सा० ४६६ वे-हत्थेहि य किंक्खू(रिक्कू) जवृ० ५० १३-३३ भत्तीए पुज्जमाणो कत्ति० अगु० ३२० वोधीय जीवव्यामूला० ७६२ भत्तीए मए कधिदं मूला० मा वोह-णिमित्ते सत्थु किल परम०प० २-८४ भत्ती तवोधिम्हि य भ० अारा० ५१७(२) बाहिविवजिउ जीव तुहुँ , पाहु० दो० २५ / भत्ती तवोधिम्हि य* मूला० ३७१ भत्ती तुट्ठी य खमा भावस. ४६६ भत्ती यूया वरजणणं भ. श्रारा०४७ भत्तेण व पाणेण व भ० श्रारा०५६३ भउमजुओ दियहेहिं श्रायः ति० ४-२३ । भत्ते पाणे गामंतरे मूला० ६६० भगवं अणुग्गहो मे - भ० श्रारा० ३७७ भत्ते पाणे गामंतरे मूला० ६६३ भच्छ(त्थ)हणाण कालो तिलो० ५० ४-१५०६ भत्ते वा खमणे वा पवयणसा० ३-१५ भजिदम्मि सेढिवग्गे तिलो० प० ७-११ | भत्ते वा पीणे वा भ० धारा० ३६५ भजिदूणं जं लद्धं तिलो०प०७-५६३ | भत्तो अरित्तहत्थो श्रायः ति०२३-१२ भजिदूणं जं लद्धं तिलो० प० ७-५७७ / भदस्स लक्खणं पुण भावस० ३६५ भज्जस्सद्धच्छेदा तिलो० सा० १०६ भई मिच्छदसण सम्मइ०३-६६ भज्जा भगिणी मादा भ० श्रारा० १३३ तिलो. १०-१२ भणइ अणिच्चा सुद्धा+ णयच० ३२ ममइ जगे जसकित्ती वसु० सा० ३४४ भरण + दन्वस० णय० २०४ भमइ णग्गउ भमइ गग्गउ- भावस० २५४ गइ परम०प०२-४८ भमिदे मणवावारे गाणसा०४६ पवयणसा० २-१० भयणीए विधम्मिजंतीए म० श्रारा० २०१ भणिदो य अधोलोगो जबू० ५० ११-१०६ भयजुत्ताण णराणं तिलो० ५० ४-४६१ भणियं देवयकहिअं रिट्ठस. १८५ भयरणा वि हु भइयव्वा सम्मइ० ३-२७ भणियं सुयं वियक्कं भावसं० ६४५ भयदुगरहियं पढमं गो० क० ७६४ भणिया जीवाजीवा दवस० णय० १५० भयमरइदुगुंछा वि य पसं० ४-३६३ भणिया जे विव्भावा दव्वस० गय० ७७ भयमागच्छसु संसारादो म. पारा० १४४२ भएणइ खीणावरणे सम्मइ०२-६ भयरहिया णिंदूणा पचस० ५-३७ भएणइ जह चउणाणी सम्मइ०२-१५ भयलज्जाल कत्ति० अणु० ४१७ भएणइ विसमपरिणयं सम्मइ०३-२२ भयवसणमलविवज्जिय रयणसा०५ भएणइ संबंधवसा सम्मइ०३-२० भयसहियं च जुगुच्छा गोक०४७७ भत्तपइएणाइविही गो० क० ६० | भयसोगमरदिरदिगं सायपा० १३२ (७६) भरणा द

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