Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
View full book text
________________
पुरातन-जैनवाक्य-सूची
२३०
-
मूला० १६५
भवपच्चइगो सुरणिरयाणं गो० जी० ३७० भाणु-ससि-जदु-पसिद्धा जंवू० प०८-11
तिलो० ५०४-६२४ भवसयदसणहेर्दू
तिलो० ५० ५-३५०
भायणअंगा कंचणभवसायरे अणंते भावपा० २० | भायणदुमा वि णेया
जंबू० प०२-१३० भविश्रो सम्मदसणसम्म०३-४४ | भारक्कंतो पुरिसो
म. पारा० ११७८ भवि भवि दसणु मलरहिउ पाहु० दो० २१० भारं णरो वहतो। भ.प्रारा० १७१३ भवियति भवियकाले गो० क० ६२ | भावइ अणुव्वयाई
भावसं०४८८ भविया ज अल्लीणा
छेदस०६४ | भावचउक्कं चत्तं
रायच०१ भवियाण बोहणत्थ
धम्मर० १६३ भावणणिवासखेत्तं
तिलो० ५०३-२ भविया सिद्धी जेसिक पंचस० १-१५६ भावणलोयस्साऊ
तिलो० ५०३-६ भविया सिद्धी जेसिं* गो० जी०५५६ | भावणवितरजोइस
अंगप०३-३२ भव्वकुमुदेक्कचंदं
तिलो० ५० ५-१ भावणविंतरजोइसिय
तिलो० ५० १-६३ भन्वगुणादो भव्या दव्वस० गाय० ६२ भावणवेंतरजोइस
तिलो० ५० ५-३०७ भव्वजणवोहणत्थं
चारित्तपा० ३७ | भावणवेंतरजोइस- तिलो०५०५-७८ भव्वजणमोक्खजणणं तिलो० ५० ३-१ भावणवेंतरजोइसिय
तिलो०प०1-1 भव्यजणमोक्खजणणं तिलो० ५०-७० | भावणसुरफरणाओ।
तिलो० ५० ५-१५ भव्वजणाणंदयरं तिलो० प० १-८७ | भावरहिएण स-उरिस
भावपा.. भव्वत्तणस्त जाग्गा गो० जी०५५७ भावरहियो ग सिज्मर
भावपा." भव्वाण जेण एसा तिलो० ५० १-५४
भावपा०४३
भावविमुत्तो मुत्तो भव्बामव्वह जो चरणुपरम०प०T.K.M.२-७४(१)/ भावविरदो दु विरदो भव्वामव्वा एव हि तिलो. प०३-१६१
भावपा०३
| भावविसुद्धिणिमित्तं भव्वाभव्या छस्मम्मत्ता तिलो० ५० ४-४१७ भावसमणा हु समणा
भावपा. भव्वा समत्ता वि य गो० जी० ७२५ । भावसमणो य धीरो विदराणपणदर
गो० क.८५६
भावसमणो वि पावर भावपा.१२५ भविदरुवसमवेदग__ गो० क० ३२८
भावपा.. भावसहिदो य मुरिणणो
सावय० दो० १६१ भव्वुच्छाहणि पावहरि
तिलो. प०-७६
भावसुदं पज्जाए भव्वे सव्वमभव्वे गो० क० ५५०
पचत्यि० ११
भावस्स पत्थि रणासो भव्वे सव्वमभवे गो० क० ७३२ | भावह अणुन्बयाई
भावपा० ११ भन्यो पदिश्रो सरणी पसं० १-१५८
भावहि अणुवेक्खाओ भंगम्मि वरिसफालिय- छेदपिं० १३१ / भावहि पढमं तचं भंगविहीणो य भवो पवयणसा० १-१७ भावहि(ह) पंचपयारं भगा एक्केक्का पुण
गोक.३८०
भावा खइयो उवसम भंजसु इंदियसेणं
भावपा० ८८
भावा जीवादीया *ते सम्म गाणं म. श्रारा० १४८१ भावाणं सहहणं
गो०जी० ४८२ भभा-मिदंग-मद्दल
जय० प०२-६५
भावाण सामएणविसेसभंभा-मु(मि)यंग-मद्दल- तिलो. १०३-२५ | भावाणुरागपेमा भंभा-मु(मि)यंग-मद्दल- तिलो० ५० ४-१६३६ भावा णेयसहावा भाउ विसुद्धउ अप्पणउ परम० ५०२-६८ भावादो छल्लेस्सा भागभजिदम्मि लद्धं तिलो. प०४-१०५ | भावाभावहि संजुवउ परम० ५० भागमसंखेन्जदिम
मूला० १०६६ भागी वच्छलपहावणा
वसु० सा० ३८७ । भावुग्गमो य दुविहो
मूला० १००२
भावस० ४८
भावपा०२ भावपा० ६५ भावति०२१ पचस्थि० १६ पारा० सा०
भ० श्रारा० ७३७ दवस. एय० ५७
गो० जी०५५४ परम०प०१-१३ परम०प० 1-5
भावि पणविवि पंच-गुरु
मूला.१३५

Page Navigation
1 ... 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519