Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 417
________________ प्राकृतपद्यानुक्रमणी २२१ बहुविविहभवणणिवहो जब० प० ३-२१७ | बधंतं चेवुदयं पंचस०५-२३६ बहुविविहसोहविरइय- जब० ५० ११-३२६ | बंधंत चेवुदयं पंचसं० ५-२४१ बहुविहववाहिं तिलो० ५०४-१०५० | बंधतं चेवुदयं पंचस० २३७ बहुविहजालापहदा जब० ५० ११-१७० बंधंति अप्पमत्ता पंचस०४-३८३ (क) बहुविहदेवीहिं जुदा तिलो० प० ५-१३५ बंधंति जसं एयं * पचसं०४-३०२ बहुविहपडिमट्ठाई जोगिभ० ११ | बंधीत जसं एयं * पचसं०५-६५ बहुविहपरिवारजुदा तिलो० ५० ३-१३२ / बंधति य वेयति य पंचसं०४-२२६ बहुविहबहुप्पयारा* पंचसं० १-१४१ बधतो मुच्चतो भ० आरा० १७६७ बहुविहबहुप्पयारा * गो० जी० ४८५ | बधाणं च सहावं . समय. २६३ बहुविहबहुप्पयारा * कम्मप० ४६ | बंधा तियपणछएणव गो० क. ७०६ बहुविहमणिकिरणाहय- जबू० प०३-२३८ बंधादेगं मिच्छ कम्मप०५३ बहुविमिसाभिहाण अंगप०२-७६ | बधा संता ते चिय पंचस०५-४४२ बहुविहरइकरणेहिं तिलो० ५० ५-२२४ बंधित्तो पजंक कत्ति० अणु० ३५५ बहुविहरसवत्तेहिं तिलो० ५० ५-१०८ | बधुक्कट्टणकरणं गो० क. ४३७ बहुविहविगुल्वणाहि तिलो० प० ८-५६० बधुक्कट्टणकरणं गो० क० ४४४ बहुविहविदाणएहिं तिलो०प०४-१८६२ बंधुदये सत्तपद गो० क० ६७३ जुत्ता तिलो०प०४-२२४८ | बधुवभोगणिमित्ते समय०२१७ बहुवेयणाउलाए धम्मर०८० | बंधु वि मोक्खु वि सयलु जिय परम०प०३-६५ वहुसत्थअत्थजाणे बोधपा०१ बधे अधापवत्तो गो० क. ४१६ बहुसालभजियाहिं तिलो०प०४-१६४४ | बधे च मोक्खदेऊ दव्वस० गय०२३६ वहुसो य गिरिसरित्था जवू० प० ६-१११ वघेण विणा पढमो + पचस० ५-१६ बहुसो वि जुद्धभावणाए म० श्रारा० १६७ पचस०५-२६५ वहुसो वि मेहुण जो छेदपि० ५१ | बंधेण होइ उदो- कसायपा० १४३ (६०) बहुसो वि लद्धविजडे भ० श्रारा० १२३१ | बंधेण होइ उदओx कसायपा० १४४ (६१) बहुहावभावविन्भम- वसु० सा० ४१४ । बघेण होदि उदओ लद्धिसा० ४५० बंध-उदया उदीरण पंचस० ४-५ | बघेण होदि उदओx लद्धिसा० ४३८ बंधण-छेदण-मारण- णियमसा० ६८ लद्धिसा० ४२४ बधण-णिवधण-पक्कम- अंगप०२-४५ बंधे वि मुक्खहेऊ गयच. ६६ वधणपहुदिसमरिणय- गो० ० ८२ बंधे संकामिज्जदि गोक०४१० बंधणभारारोवण वसु० सा० १८० बंधो अणाईणिहणो दव्चस० गय० १२५ बधणमुक्को पुणरेव भ० श्रारा० १३२६ बंधो(?) णिरओ सतो(१) लिंगपा० १६ वधतियं अडवीसदु गो. क. ७२१ बधोदएहिं णियमा ऽ कसायपा० १४८ (६५) बंधदि मुंचदि जीवो कत्ति० अणु० ६७ | बंधोदएहि णियमा ऽ लद्धिसा०४५२ बधद्दन्वाणतिमलद्धिसा० ५२६ बंधोदयकम्मंसा गो० क.६३० वधपदे उदयसा गो० क० ६६० बंधोदयकम्मसा पचस०५-८ बंधपदेसग्गलणं चा० अणु० ६६ बधो व संक्मो वा कसायपा० १४२ (मह) वधम्मि अपूरते सम्मइ०१-२० धो व संकमो वा कसायपा० २२३ (१७०) वध-वध-जादणाओ भ० श्रारा० ८६७ / बंधो व सकमो वा कसायपा० २१६ (१६६) वधविहाणसमासो पंचसं० ४-५१५ | बंधो व संकमो वा कसायपा० १४७ (६४) वंधहें मोक्खह हेउ णिउ परम० ५० २-१३ । बधो समयपवद्धो गो० जो० ६४४

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