Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 348
________________ १५२ पुरातन-जैनवाक्य-सूची तत्तो ववसायपुरं तत्तो वि असंखेज्जा तत्तो विचित्तरूवा या तत्तो विदिया भूमी तत्तो विदिया साला तत्तो वि पुणो गंतुं तत्तो विभंगणामा तत्तो विसेसअधिया तत्तो विसोकयं वीदतत्तो वि हंसगभं तत्तो वेदोदो पुण तत्तो संखिज्जगुणा तत्तो संखेजगुणो तत्तो सीदो तवणो तत्तो सीदोदाए तत्तो सुणिण्णो खलु तत्तो सुहुमं गच्छदि तत्तो सेणाहिवई तत्तो सोमणसादो तत्तो सोमणसादो तत्तो हरिसेण सुरा तत्तो हं तणुजोए तत्य अणोवमसोभो तत्थ अवाओवाय नत्थ अविचारभत्तपतत्थ असंखेजगुणं तत्थ इमं इगिवीस तत्थ इम छव्वीसं * तत्थ इमं छब्बीस * तत्थ इमं तेवीसंx तत्थ इमं तेवीसंx तत्थ इम पणुवीस तत्थ इम पणुवीसं तत्थ गुणसेढिकरणं तत्थ चुया पुण सता तत्थ च्चिय कुंथुजिणो तत्थ चिय दिवाए तत्थ जरामरणभय तत्य ण कप्पइ वासो तिलो. प. ८-५७८ | तत्थ ण बंधइ आउं भावस०२०० जंब. प०११-२०४ तत्थ णिदाणं तिविह भ. श्रारा० १२१५ तिलो० ५० ४-१६१६ तत्थणुहवंति जीवा मूला० ७१५ तिलो०प०४-१८६८ तत्थतणऽविरदसम्मो गो० क. ५३६ तिलो. १०४-२१६८ तत्थ दु खत्तियवसो जय० प० ७-५६ तिलो० ५०४-८०० तत्थ दु णस्थि समारणं जंबू प० ५१-३६२ जब० प०११-२०७ तत्थ दु णिट्टिदकम्मा जबू० ५० ११-३६१ जव० प०-१५४ तत्थ दु देवारएणो जय० प०८-७८ मुला० १२१ तत्थ दु महाणुभावो जब० ५० ११-३०० तिलो० प० ४-१२१ तत्थ पढमं णिरुद्धं भ. श्रारा० २०१२ तिलो. सा० ७०३ तत्थ पम्मि विमाणे जय० प०११-२२५ जबू० ५० १०-३८ | तत्थ पम्मि विमाणे जव०प०११-२५१ मूला० १२१३ तत्थ पयाणि बुहेण य अंगप००-५८ गो० जी० ६३६ | तत्थ पयाणि य]पंच य अगप०१-७२ (देखो 'तत्तो तविदों') | तत्थ भवं सामइयं अंगप०३-१३ तिलो० ५० ४-२१०७ । तत्थ भवे किं सरण कति. अणु० २३ अगप० २-६२ | तत्थ भवे जीवाणं समय०६१ लद्धिसा० ५७५ तत्थ य आयसरूवं शायति०१-३ तिलो० प० ४-१३२८ तत्थ य कालमणंतं भ. श्रारा० ४६८ जंबू० ५० ४-१२८ तत्थ य गंगा पवहइ जव० प०८-१२३ जवू०प० ६-१० तत्थ य तत्ते तत्ते श्राय० ति० १-३७ तिलो. प०८-५८६ तत्थ य तीसट्ठाणा + पंचस०५-७७ पारा० सा०६७ तत्थ य तीसं ठाणं + पचस०४-२८४ जब० ५० १६-३२४ तत्थ य तोरणदारे तिलो०प० ४-१६६५ भ० श्रारा० ६६६ तत्थ य दिसाविभागे तिलो. प० ४-१६५६ भ० श्रारा० २०११ तत्थ य पडिवादगया* लद्धिसा० १६७ लद्धिसा० १४१ | तत्थ य पडिवायगया* लद्धिसा. १८४ पचस०५-१५७ तत्थ य पढम तीसंx पचसं०४-२६४ पचस०४-२७३ तत्थ य पढमं तीसं x पचस० ५-५७ पचसं० ५-६६ तत्थ य पसत्त्थसोहे तिलो० ५० ४-१३४२ पंचस०४-२८१ तत्थलि-उपरिम-भागे तिलो० सा० ६४ पंचस० ५-७४ तत्थ वि अणंतकालं वसु० सा० २०६ पचस० ५-१६८ तत्थ वि असंखकालं कत्ति० अणु० २८५ पंचस०४-२६१ तत्थ विक्खंभमज्झे जब० ५० ११-२१४ लद्धिसा. ६४१ तत्थ वि गयस्स जाय भावस० १४२ भावस०५४२ तत्थ वि दहप्पयारा वसु० सा० २५० तिलो. प०४-५४१ | तत्थ वि दुक्खमणतं वसु० सा०६२ तिलो. प०५-२०३ तत्थ वि पडति उवरि धम्मर० ३१ मूला० ७०६ तत्थ वि पडंति उवरिं मूला० १५५ । तत्थ वि पविटमित्ता(त्तो) वसु० सा० १६२ वसु० सा० १५२

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