Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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प्राकृतपद्यानुक्रमणी
२१३
पुढवी जलं च छाया * वसु० सा० १६ पुण्णस्स कारणं फुड
भावस० ४२५ पुढवी जल च छाया दव्वस० णय० ३१ पुण्णस्स फारणाई
भावसं० ३६५ पुढवीतोयसरीरा कत्ति० अणु० १४८ पुरणस्सासवभूदा
मूला० २३५ पुढवी पउमवदी इगि- तिलो. सा. ६५३ पुरणं पि जो समिच्छादि कत्ति० अणु० ४०६ पुढची पिंडसमाणा समय० १६६ पुरण पुन्वायरिया
भावसं० ३६६ पुढवी य उदगमगणी पचस्थि० ११० | पुण्णं पूदपवित्ता
तिलो० ५० १-८ पुढवी य बालुगा सक्करा मूताः २०६ पुण्ण बंधदि जीवो कत्ति० अणु० ४१२ पुढवी य सक्करा बा
पचस०१-७७ पुरणाग-णाग-चंपय- जब० ५० १-३५ पुढवीय समारंभं
मूला० ८०२ | पुरणाग-णाग-चंपय- जब० ५०२-६७ पुढवीयादीपंचसु
गो० क० ७१७ पुण्णाग-णाग-पूगी- तिलो० सा० ५८० पुढवीवईण चरियं जब० प०४-२१० पुरणाग-तिलय-वरणा जबू०प०३-६१ पुढवीसंजमजुत्ते मूला० १०२२ पुण्णाणं पुज्जेहि य
भावस. ४७२ पुढवीसाणं चरिय तिलो० ५०८-२६१ पुण्णापुरणपहक्ग्या तिलो. प०५-४५ पुढवीसिलामो वा भ० श्रारा०६४० पुराणाय-णाय-कुजय- तिलो० प०४-७६८ पुण जोयावह भूमी
रिट्ठस. १५२ पुराणाय-णाय-चंपय- तिलो०५०४-१५७ पुणरवि काउंणेच्छदि कत्ति० अणु० ४५२ पुराणाय-णाय-पउरं
जब० ५०८-७० पुणरवि गोसवजएणे
भावस० ५३ पुण्णा वि अपुरणा वि य कत्ति० अणु० १२३ पुणरवि किरणे पच्छिम- तिलो० सा० ३५४ पुण्णा सइमणवत्था तिलो. सा. २६ पुणरवि तत्तो गतु जंब० ५० १०-४८ पएणासए ण पूरणं कत्ति० अणु० ४११ पुणरवि तमेव धम्म भावसं० ४ १६ | परिणदरं विगिविगले गो० क० ११३ पुणरवि तहव त ससार भ० श्रारा० १६५२ परिणमए हेट्ठादो तिलो. प० ४-२४३६ पुणरवि दसजोगहदा पचस० ५-३४१ | पुण्णिमदिवसे लवणे जब० ५० १०-१८ पुणरवि देसो ति गुणो गोक०८३८ पुरिणं पावइ सग्ग जिउ जोगसा० ३२ पुणरवि धरंति भीमा
धम्मर०४४ पुण्णु पाउ जसु मणि ण समु सावय० दो० २११ पुणरवि पणमियमत्थो धम्मर० १६८ | पण्णु वि पाउवि कालु णह* परम० प० १-६२ पुणरवि मदिपरिभोग + लद्धिसा० २३८ पुण्णु वि पाउ वि कालु णहु * पाहु० दो० २६ पुणरवि मदिपरिभोग + लद्धिसा० ४२६ / पराणेकारसजोगे
गो० क० ३५२ पुणरवि विउविऊणं जबू० ५० ७-१३६ पुण्ण्ण किं पि कज्जं
ढाढसी० ३२ पुण वीसजोयणाण मूला० ११५० पुण्णेण कुलं विउल
भावस. ५८६ पुणु पुणु पपविवि पंचगुरु परम० ५० १-११ पुण्णेण समं सव्वे
गो० क. १२८ पुणो वि जवेह गुणं रिट्ठस० २०२ परणेण होइ विहानो तिलो० १० १-५४ पुराणजहएणं तत्तो
गो० जी० १०० परणेण होड विहओ पाहु० दो० १३८ पुण्णजुदस्स वि दीसइ कत्ति० अणु० ४६ परणेण होइ विहवो + परम० प० २-६० पुण्णतसजोगठाणं
गो० क० २४७ परणेसु सरिण सव्वे पचस०१-४६ पुरणदिणे अमवासे तिलो. सा. ६०० पुराणोदएण कस्सड भ. श्रारा० १७३३ पुण्णफला अरहता पवयणसा०१-४५
पुत्तकलत्तणिमित्त
बा० अण. २० पुण्णवलेणुववज्जइ भावसं०५८७ पुत्तकलत्तविदूरो
रयणसा० ३३ पुण्णम्मि य पवमासे तिलो० ५० ४-३७५ पुत्तत्थमाउसत्थं
भावस० ७६ पुण्णरासिण्हवणाइय' साधय. दो० २०७ पुत्ताइबंधुवग्गंx
णयच० ७३ पुण्णवसिट्टजलप्पह- तिलो० ५० ३-१५ | पत्ताइवंधुवग्गं x दवस. य० २४३

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