Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 382
________________ १८६ पुरातन-जैनवाक्य-सूची देसस्स मज्झमागे जंब० ५०८-१८ देहस्स य णिव्यत्ती मूला० १०५० देमस्म रायधाणी जव० प० ६-४१ / देहस्स लाघा गेह म. पारा० २४४ देरच रज दुग्गं णयच०७४ देहस्स मुक्कसोणिय भ० श्रारा० १००४ देसं भोच्चा हा हा भ० श्रारा० ६६३ देहस्सुच्चत्त मज्झिमासु वसु० सा० २५४ देसा दुभिक्खीदी- तिलो. सा. ६८० परम०प०२-१ देसामासियसुत्तं भ० श्रारा० ५:२३ देहह उभउ जरमरणु परम० ५० १-७० देसावरणगणोएण्व्भत्थं गो० क० १६८ देहहँ पेक्खिवि जरमणु, परम० ५० 1-01 देसावहि इब्भेयं सुटसं० ६३ | देहहिं उभर जरमरणु पाहु. दो० ३४ देसावहि परमावहि भावसं० २६० देहहो पिक्खिवि जरमरणु, पाहु० दो० ३३ देसावहिवरदव्यं गो० जी० ४१२ देहं तेयविहीणं रिटम० ३३ देमेक्कदेसविरदो भ० प्रारा० २०७० देहादि उ जे परि कहिया (य) जोगमा० १० देसे तदियकसाया गो० क० २६७ / देहादिउ जे परि कहिया(य) जोगसा." देसे तदियकसाया गो० क० ३०० देहादिउ जो परु मुणइ . जोगसा० ४८ देसे पुह पुह गामा निलो० सा० ६७० देहादिचत्तसंगो भावपा० ४४ देसे सहस्स सत्त य पसं० ५-३६३ देहादिसंगरहिओ भावपा०५६ देसो त्ति हवे सम्म .. गो० के० १८१ | देहादिसु अणुरत्ता रयणमा० १०६ देसो त्ति हवे सम्म क्म्मप० १४३ । देहादी फस्संता गो. क. ३४० देसो समये समये लद्धिमा० १७४ | देहादी फासंता + गो० क.१० देसोहिअवरदच गो० जी० ३६३ देहादी फास्ता + क्म्म प० ११६ देमोहिमज्मभेदे गो० जी० ३६४ | देहा-देवलि जो बसड परम० ५० ३३ देसोहिस्स य अवरं गो० जी० ३७३ देहा-देवलि जो वसइ पाहु० दो० ५३ देसोही परमोही अंगप० २-७० देहा-देवलि देउ जिणु जोगसा० ४३ देहअवट्ठिढकेवल- तिलो. प० १-२३ । देहा-देवलि मिउ वसड पाहु. दो० १८६ देह कलत्तं पुत्तं रयणसा० १३७ | देहा-देहहि जो बसड परम० प० १-२६ देह गलंतह सवु गलइ पाहु. दो० १०३ / देहादो वदिरित्तो बा० अणु०४६ देहजुदो सो भुत्ता दवस० णय० १२३ देहा य हुंति दुविहा दवस. णय. १२२ देह-तव-णियम-संजम- घसु० सा० ३४२ / देहायारपएसा दव्वस० गय००४ देहतियबंधपरमो- भ० श्रारा० ०१२३ देहा वा दविणा वा पवयणसा० ०-१०१, देहत्थो भाइजड भावस०६०१ देहि दाण चउ कि पि करि सावय० दो० १२१ देहत्थो देहादो तिलो० ५० १-४१ | देहि वसंतु विणवि मुणिउ परम० प० २-१६५ देहपमाणो णिच्चो कल्लाणा० ३६ देहि वसतु वि हरि-हर वि परम० ५० १-४२ देहमहेली एह वढ पाहु० दो० ६४ देहि वसंते जेण पर परम०प०१-४४ देहमिलिदो वि जीवो कत्ति० अणु० १८५ देहीणं पज्जायाx रायच०३१ देहमिलिटो वि पिच्छदि कत्ति० अणु० १८६ देहीणं पज्जायाx दवस. य. २०३ देहमिलियं पि जीवं कत्ति० अणु० ३६६ देहीति दीणकलुगा जंब० ५० २-१६६ देहम्मि मच्छलिंगं भ० श्रारा० १०३३ देहीति दीणकलुसं देह-विभिएणउ णाणमउ परम० प० ३-१४ | देहुदो चापाण तिलो० सा० ८२६ देह-विभेय जो कुएइ परम० प० २-१०२ | देह वि जित्थु ए अप्पणउ परम० प० २-१४५ देहसुहे पडिबद्धो तञ्चसा० ४७ | देहे अविणाभावी गोक०३४ देहस्स बीयणिप्पत्ति- भ० श्रारा० ५००३ } देहे अविणाभावी मूला०८11 कम्मर० १०४

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