Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 388
________________ १६२ पुरातन-जैनवाक्य-सूची पउम महापउमो(य) तिगिंछो तिलो० सा० ५६७ / पक्खीणुज्जाहारो । भावसं० ११२ पउमम्मि चदणामो तिलो० ५० ४-१६७७ , पगडीए सुदणाणा- तिलो० ५० ४-१०१५ पउमविमाणारूढो तिलो० ५० ५-६५ पगढा असओ जम्हा मूला० ४८४ पउमस्स सिहरि जस्स य जव०प० ३-१४५ । तिलो० प०४-१०॥ पउम चउसीदिहद तिलो. प. ४-२६७ पगदीए मोहणिज्जा कसायपा० २२ (१) पउमा दु महादेवी जब० प० ११-२६० पगदे हिस्सेसं गाहुगं भ० पारा० ५०१ पउमा-पउमसिरीओ तिलो० प०३-१४ पगलंतदाणणिज्मर- जव० ५०३-२४॥ पउमावइ त्ति णामा जव० ५० ८-११२ पगलतदाणगडा जब ५० ३-१०२ पउमा सिवा य सुलसा जव० ५० १५-२५६ पगलतरुधिरधारो भ० पारा० ११७६ पाणिपत्त व जहा मूला० ३२७ पगुणो वणो ससल्ल भ० भारा० ५१७ पउमिणिपत्त व जहा भ. श्रारा० १२.१ पचयधणस्साणयणे गो० क००४ पउमेसु सामलासु य जंव० प०३-१३८ पचयस्स य संकलण गो० क० १३. पउमात्तरो य णालो जब० प०४-७४ पचलिदसण्णा केई तिलो०प०३-१६८ पउमा पुडरियक्खो तिलो० ५० ५-४० पञ्चइणो मणुयाऊ पचस० ४-४४४ पउमा य महापउमा जब० प० ३-६८ पञ्चक्खं च परोक्ख अगप०१-६२ पउरसेण विणा त्थि अगप० २-३० पञ्चक्खाओ पञ्चक्खाणं मूला० ६३३ पउर आरोयत्त भावस० १७० पञ्चक्वाण णिजुत्ती मूला० ६४० पक्कामयासयत्था भ० प्रारा० १०३१ पञ्चक्खाणणिवत्ती सुदख०४६ पक्के फलम्हि पडिदे __समय० १६८ पञ्चक्खारणपडिक्कमणु- भ. श्रारा०६८० पक्कसुअामेसु अपवयणसा०३-२६२०१८(ज) पञ्चक्खाणं उत्तर । मूला० ६३६ पक्कहि रसड्ढसमुज्जलेहिं भावस० ४७७ पञ्चक्खाणं खामण भ० भारा०७० पक्खं खघाइ वाम श्राय० ति०८-१५ पञ्चक्खाणं णवमं अगप०२-१५ पक्ख धणिट्ठरिक्खे रिस० २४१ पञ्चक्खाणं विज्जाणु सुदभ०६ पक्ख पडि एककं छेदपिं० ११२ पञ्चक्खाणी संसयवयणी अंगप०२-८४ पक्ख पुणव्वसुमि य रिट्ठस० २४५ पञ्चक्खाणुदयादो गो० जी०३० पक्ख वाससहस्स तिलो० सा० ५४४ पञ्चक्खाणे विजा गो० जी० ३४५ पक्खालिऊण देहं रिट्ठस. ४३ पञ्चक्खियाण्णपाणे छेदपि. १६३ पक्खालिऊण देह रिट्ठस०७० पञ्चक्खे तह सयलो जव० ५० १३-४८ पक्खालिऊण पत्तं वसु० सा० ३०४ पञ्चयभूदा दोसा मूला०६८ पग्वालिऊण वयण वसु० सा० २८२ पञ्चयवंतो रागा पक्खालित्ता देहं रिट्टस. १३७ पच्चय-सत्तावरणा प्रास. ति०१६ पक्खालियकरचरणा रिट्ठस. १५४ पञ्चंति मूलपयडी पंचसं०४-५४३ पक्वालियफरजुअल रिट्ठस. १६३ पञ्चाहरितु विमये हिं भ. भारा. १७०७ पक्खालियणियदेही रिट्टस. १८१ पञ्चुग्गमणं किच्चा पक्खित्ते पत्तेयं पंचस० ५-११३ | पञ्चप्पएणम्मि वि पज सम्मइ. ३-६ पक्खिय अहमिय वा छेदपिं० १५० पचुप्पएणं भावं सम्मइ०३-३ पक्खियचाउम्मासिय- भ० भाग० ५६० पञ्चूमे उद्वित्ता वसु० सा० २८० पक्खियचाउम्मासियछेदपि ११ पच्छण्णए पएसे छेदपि० ३०० परवीणवादिकम्मो पवयणसा. १-१ | पच्छपणेण अधिश्चतम्मि (१) पिं० १५॥ पक्खीण उकस्म मुला० ५.१ पच्छपणे हा विणियडे प्रायः ति०१६-१२ दन्धस. णय० ३०० मूला० १६१

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