Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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प्राकृतपद्यानुक्रमणी
२०५
पल्लस्स सखभाग
लहिसा० ४१० पविमित्ता णीमरिदा जंवू० प० ६-४६ पल्लस्स संखभाग
लदिमा० ४१६ पविमवि णिज्जणवण भावस० २१३ पल्लस्म संखभागो लद्विमा० ११४ पव्वज्ज संगचाए
चारित्तपा० १५ पल्लंकश्रामणाओ तिलो. प० ६-३१ पत्रज्जहीणगहिणं
लिंगपा० १८ पल्ल रसरसगुणिशं प्रायः ति०१७-१७ | पन्बजाए रद्धो
भ० यारा० २०३१ पल्लाउगा महप्पा जवृ० ५० १०-४६ / पव्वज्जादी सव्व
भ० धारा० ५५ पल्लाउजुदे देवे तिलो० ५० ६-८८ पधज्जादी मन्च
भ० धारा० ५३५ पल्ला सत्तेक्कारम तिलो० ५०८-५२८ | पाजदो मल्लिजिणो तिलो. ५० ४-६६० पल्लासंखघणगुलगो० जी० ४६० पव्वदमित्ता माणा
भ. श्रारा० १४० पल्लासखेज दिम
गो० क० ६१७ पन्यद-वावी-कूडा तिलो० मा० ६३८ गल्लासंखेजदिम
गो० जी०४८० पव्वदविमुद्धपरिही तिलो. १०४-२८३ पल्लासखेजदिमा
गो० क० २२४ पव्वदरिच्छणामा तिलो. प०४-२००३ पल्लासखेज्जदिमा
गो० जी० ६५८ पव्वेसु इत्थिसंवा पसु० सा ! पल्लासखेज्जदिमा गो० क. १५४ पसमइ रयं असेसं
भावमा पल्लासंखेज्जवहिद- गो० जी० २०८ पसरइ दाणुग्योसो तितो पT-18 पल्लासंखेज्जंसा तिलो० ५०८-५४७ पसुवणधरण खेत्तिय सार है। पल्लासखेज्जाहय
गो० जी० २५६ पसुमहिलसढसगं पल्लासीदिममतर- तिलो० सा० ७६७ पस्सदि ओही तत्थ असंन्वे में पल्लोवमाउस्मा भावस० ५३६ पस्मदि जाणदि य तहा
'' पल्लो सायरसूई +
मूला० ११२६ / परसदि तेण मरूपं द पल्लो सायरसुई + जबू०प० १३-४३ परम्भुजा तस्स हवे
.... । पल्लो सायरसूई + तिलो० सा० १२ | पहदो रणहिलो २५ --- पवणदिसाए पढम तिलो० ५० ५-२०१पहरंति र तलनिक
१५ पवणदिसाए होदि हु तिलो० ५० ४-१८३१ / पहरेणेवर पवणवसलियपल्लव- जबू० प०३-२०५ : पहिया म पवणंजय त्ति णामे- जबू० प० ११-२८८ पहिया जेनी
: .. पवणंजयविजागरी तिलो० ए० ४-१३७ । पह जीव न
: 247 पवणीसाणदिमासुं तिलो०प० ४-१६५२ पह उन्ह पवणेण पुरिणय त तिलो० ५० ५-०४३३ पाहु ? :पवयगणिण्हवयाणं भ० प्रारा०६५ पहा
:पवयणपमाणलक्षण- मिद्धत : पं
. ५.::. ::: पवयणपरमा भत्ती
कम्मप० ११६ पंकको ५०३-११ पवयणसारख्भास
रयण्मा
जाने
सिर पवरवरधम्मतित्थं
मूला० ४७६ पोकग लिन्ग ९०५-१ पवरवरपुरिसमीहा जबू०प०८-६१ पंचम्ट्रक पवराउ वाहिणीओ तिलो. प०१-६ -
नव्यं । पवलपवणाभिहय- जंवृ० १० १8-12 पंचव नियमाप्रो पविभत्तपदेसत्तं पश्यणमा..-12 पविसंति मणुवतिरिया तिलो० ५०४-१६०६ पंचक्रवा चरवा पविसंते अणिसीही
मूला. पंचम्या तस्साया

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