Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 380
________________ १८४ पुरातन-जैनवाक्य-सूची दुदुभगोरत्तणिभो तिलो० ५० ५-१६ | देवद-पासंदृटुं मूला० ४२५ दुदु हन्मुइग-मद्दल- तिलो० ५० ६-१४ | देवदुध पणमरीरं पंचस०३-६० दूअक्ख राइ दूह(?) __ रिटस० १६२ | देवदुयं पंचिंदिय । पचस०४-२६४ दूओ बभण विग्यो भ० श्रारा० ११३, देवदुयं पंपिंटिय। पचसं०५-२० दूयस्त परहयाल रिस० २४१ देवमणुस्सादीहि पचस. १-३७ दूराव किट्टिपढम ला दिसा. १५८ | देवर्यापयणिमित्तं धम्मर०२५ रदूण य ज गहणं जबू० ५० १३-६ देवयपियरणिमित्त धम्मर० १४३ दूरण साधुमत्थ भ० धारा० १३०६ । देवरिसिणामधेया सिलो. प०८-६४४ दूरे ता अगत्तं ___सम्मइ० ३-१ देवलि पाहणु तिथि जलु पाहु. दो० ६६ देइ जिणिदहें जो फलइँ सावय० दो० १६० देववरोदधिदीवा तिलो० ५०५-२३ देउ ण दउल णवि सिलए परम०प०१-१२३क्षे०१ देवस्सियणियमादिसु मृला. २८ देउ पिरजणु इउँ भणड परम० प० २-७३ | देव: सत्यहँ मुणिवरहें परम० ५०२-६३ देउलु देउ वि सत्थु गुरु परम० प० २-१३० परम०प०२-६२ देखताह वि मूढ वढ पाहु० दो० १६६ देवा-अजसफित्ती पचस०३-६६ देवकुरुखेतजादा तिलो० ५० ५-२०६६ पंचमं०४-४२३ देवकुरु पउम तवण तिलो० सा० ७४० देवागं पमत्तो+ गो० क. १३६ देवकुरुम्मि[यविदिमे जंवृ०५०६-१७ देवागं पमत्तो+ क्म्म प० १३० देवकुरुवएणणाहिं तिलो. प० ४-०१६१ देवाउगं पमत्तो + पचस०४-४२७ देवगइमह गयाषी पचसं० ५-४६१ ! देवाग पमत्तो+ पचस०४-४५६ देवगई पयडोओ पसं० ४-३५० देवास्स य उदए ४ पचस०५-२२ देवगीदो पत्ता तिलो०प०८-६८१ देवाउस्स य उदए ४ पंचम०५-२६७ देव-गुरु-धम्म-गुण-चारित्तं रयणसा० ४६ देवास्स य एवं पंचस०४-४३२ देव-गुरुम्मि य भत्तो मोक्खपा० ५२ देवा चरिणकाया पस्थि. 15 देव-गुरु-मत्थभत्तो दवस० गय०३१० देवा चरिणकाया जंबू० ५० ५-६. देवगुरुसमयकज्जेहि छेदपिं० १०६ देवाण गुणविहूई भावपा. देवगुरुसमयभत्ता रयणमा०६ | देवाण णारयाणं कत्ति० अणु० १६५ देवगुरूण णिमित्त कत्ति० अगु० ४०६ देवाण भवणिवहो जबू० प० - १२६ देवगुरूणं भत्ता मोक्खपा० ८२ देवाण होइ देहो भावस०४५ देवचउकं वज्ज गो० क०२१४ देवाणं अवहारा गो० जी० ६३४ देवचउक्काहारदु गो० क० ४०० देवाणं देवगढी देवञ्चणाविहाग भावस. ६२६ देवाणं पि य सुक्ख कत्ति. अणु०६६ देवच्छंदस्स पुरो तिलो. प०४-१८८० देवाण सव्वाणं श्राय०ति०८-१६ देवच्छेदसमायो जवृ. ५० ४-७ देवा पुण एइंदिय - गो. क० ३८ देवजुदेकट्ठाणे गो० क. १७१ देवा पुरण एइंदिय कम्मप० १३४ देवट्ठवीस परदे गो० क० ५७० देवा य भोगभूमा देवठ्ठवीसबंधे गो० क० ५७३ देवारर एचदुरण जवृ० प०७-६ देवतसवण्णअगुरुचउकं लद्विसा०२१ देवाररणम्मि तहा जंबू०प०-६ देव तुहारी चिंत महु पाहु. दो० १८२ | देवारगणं अण्णं तिलो०प०४-२३२२ देवत्तमाणुसत्तो भ० श्रारा० १५८८ | देवा विज्जाहरया तिलो. प० ४ -१५५५ देवद-जदि-गुरुपूजासु पवयणसा. १-६६ । देवा विणारइया वि कत्ति० अणु० १२ भावति०७१ मूला० ११२६

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