Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 355
________________ प्राकृतपद्यानुक्रमणी १५६ a. तह सव्वे रणयवाया सम्मइ० १-२५ / तं तस्स तम्मि देसे कत्ति० अणु० ३२२ तह संजमगुणभरिदं भ० श्रारा० ५०४ तं तारिससीदुण्हं वसु० सा० १४० तह ससारसमुद्दे भावसं० ११० | त तिएिणवारवग्गिद- तिलो० सा०५० भावस०५८२ तह सामरणं किच्चा भ० श्रारा० १२८० | त व्वं जाइसमं । तह सिद्ध णिसध हारिद जवू० ५० ३-४२ तं दहपउमस्सोवरि तिलो० ५० ४-१७६० तह सिद्धसिहरिणामा जवू० ५० ३-४५ | त दुम्भेय पउत्त भावस० ६४२ तह सुप्पबुद्धपहुदी तिलो० ५० ८-१०५ | तं देवदेवदेवं पवयणसा०१-७६२०६(ज०) तह सुहुमसुहुमजेहें गो० क. २३८ | त ण खु खमं पमादा भ० श्रारा० ४६६ तह सूरस्स य बिंद रिट्ठस० ४६ | तं पक्खं जाणेहि य (उत्तरार्ध)* रिट्ठस० १६७ तह सो लद्धसहावो पवयणसा० १-१६ / तं पढिदुमसभाये मूला० २७८ तह होइ सेट्ठरासी जबू०प०७-२५ | तं परियाणहि दवु तुहुँ परम०प०१-२७ तहा च वत्तणीयातं अगप०२-६६ | तं पंचभेय उत्त भावस० ३३१ तहिं तरणामदु-वाणा तिलो० सा० ६०६ तं पायडु जिणवरवयणु सावय० दो० ६ तहिं च उदीहिगिवासक्खंधा तिलो० सा० १००० | त पि अ अणुपट्टावण- छेदपिं० २६३ तहिं सव्वे सुद्धसला गो० जी० २६६ तं पि य अगम्मखेत्तं तिलो० ५० ७-६ तहिं सेसदेवणारयगो० जी०२६८ भावस० १६ तहिं होइ रायधाणी जब० प०८-२८ त पुण अट्ठविहं वा ४ गो० क०७ त अपत्त आगमि भणिउ सावय० दो० ८३ | तं पुण ठाढविहं वा x कम्मप०७ तं उजाण सीयलछायं तिलो० ५० ४-८८ भावस० १०८ त उवरि भणिस्सामो तिलो० सा० १३ | त पुण चउगोउरजुद तिलो सा०६८ तं एयत्तविहत्त समय० ५ / त पुरण णिरुद्धजोगो भ० श्रारा० १८८६ त एवं जाणतो भ० आरा० ५४५ ' तं पुण सपरगणट्ठिय- छेदपिं० २८१ तं कर्यातप्पडिरामि तिलो० सा०४३ | तं फुड दुविहं भणिय भावसं० ३७४ तं किं ते विस्सरियं वसु० सा० १६० तं धंतो चउरो पंचसं०४-२५१ तं खलु जीवणिवद्धं समय० १३६ तं वाहिरे असोय तिलो. प०३-३१ त गुणदो अधिगदरं पवयणसा०१-६८क्षे (ज) तबोल-कुसुम-लेवण णाणसा० ११ त चिय पचसयाइ तिलो० ५० १-१०८ तबोलोसहु जलु मुइवि साबय० दो० ३७ त चेव गुणविसुद्ध चारित्तपा०८ तं मणि थभग्गठियं तिलो० सा० १००६ तं चेव थिरेसु सुह श्राय० ति०५-३ तं मिच्छत्तं जमसदहणं + भ० श्रारा० ५६ ० तं चेव य यंधुदय पचसं०५-२४३ | त मिच्छत जमसद्दहणं + पचस० १-७ तं चोदसपविहत्तं तिलो० ५० ७-१२५ | त रासिं पुव्व वा तिलो० सा० ४५ तं जाण जोगउदय समय० १३४ तं रुदायामहिं तिलो०प०४-१६०० त जाण विरूवगयं तिलो० सा० ८३ तं स्वसहिदमादी तिलो० सा० ६५ त जीवाए चाव तिलो०प०४-१८४ तं लइ गुरूवएसो ढाढसी० ३३ तंणत्थि जंण लम्भइ भ. श्रारा० १४७२ | त लहिऊण णिमित्त भावस. १४३ तणत्थि जंण लभइ धम्मर०६ तं वग्गे पदरंगुल- तिलो० ५० १-१३२ त गरदुगुच्चहीण लद्विसा० २३ | तं वरणदि अप्पवल श्रगप० २५० तणा(तरणा)मा किरणामिद- तिलो०प० ४-११२ * पूर्वार्ध उपलब्ध न होनेसे उत्तरार्द्धवा प्रथम चरण त णिच्छये ण जुज्जदि समय० २६ | दिया है । आगे भी जहाँ 'उत्तगध' लिखा है वहाँ त णियणाणु जि होइ ण वि परम० ५० २-७६ । ऐसा ही जानना ।

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