Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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पुरातन-जैनवाक्य-सूची
तेसुं पासादेसु तिलो० ५० ५-२०६ | तो तम्हि जायमत्ते
वसु० सा० १४. तेसुं पि दिसाकराणा तितो०प० -१६३ | तो तम्हि पत्तपडणेण वसु० सा० १५७ तेसु मणवचउच्छासतिलो०प०-६६५
भ० श्रारा०५१५ ते सुरा भयवंता
भ० आरा० २००१ | तो तस्स तिगिच्छा जाण- भ० श्रारा० १४६७ तेहउँ वंदउँ सिद्धगण परम०प०१-३
छेदपि ० ३१४ तेहत्तर सहस्सा जंबृ० ५० १२-३२ | तो ते कुपीलपडिसे- भ० श्रारा० १३०२ तेहत्तरी सहस्सा
तिलो० प० ४-१७३८ | तो तेण तवेण तदा जबू० ५० १०-६१ तेहि विणा णेरइया पचस०४-३२५ तो ते सीलदरिहा भ० श्रारा० १३०६ तेहिं अतीताणागयसम्मइ०१-४६ तो दंसणचरणाधा
भ. श्रारा० ५६४ तेहिं असंखेजगुणा मूला० १२७ तो देसघादिकरणा
लद्धिसा० २३६ तेहिं असखेजगुणा गो० क० २५६ तो देसंतरगमणं
छेदपिं० १४३ तेहिंतो गंतूण
जबू० ५० ५-६२ | तो पच्छिममि काले भ० श्रारा० १७६ तेहिंतो एंतगुणा मूला. १२०८ | तो पडिकमणपुरोग
छेदपि० ७० तेहितो सेसजणा
तिलो० सा० ८६७
तो पडिचरिया खवयस्स भ० आरा० १६०५ तेहिं विणा बंधाओ पचसं० ४-३३७
तो पाणएण परिभा- भ० श्रारा० ७०२ ने होणाहियरहिया
तिलो. सा० ५३६
तो पुण्णचंदसुहचदा तिलो. सा० ८७६ ते हुति चदुवियप्पा दवस. णय० १११
तो भट्टबोधिलाभो भ० श्रारा० ४६७ ते होति चक्कवट्टी
जंबू० प० ७-६७ तो भावणादियंत
भ० श्रारा० १२६१ ते होंति णिव्वियारा
मूला० ८५६ तो मंदरहेमवदं
तिलो. प० ६५२ तें कज्जें जिय पई भणिउ सावय० दो० ११२
तो माणिपुण्णभद्दा तिलो० सा० २७४ तें कम्मक्खउ मग्गि जिय सावय० दो० २१०
तोरणउच्छेहादी तिलो०प०४-२६५ ते (तं)कहियधम्मि लग्गा भावसं० १६३
तिलो०प०४-७४५ तें सम्मत्तु महारयणु सावय० दो० २०८
तोरणकंक्णजुत्ता तिलो० प०४-६६ तो अंधरा विचित्ता तिलो. प० ४-१६७५
तोरणकंकणहत्था
जबू० प०३-३६ तो आयरियउवमाय- भ०श्रारा० ७१० तो उदय पंचवरणा
तोरणजुददारुवरि तिलो० सा० ८६३ तिलो० सा० ३६५
तोरणदारा उरिम- तिलो० ५० ४-२३१२ तो उप्पीलेदव्वा भ० श्रारा० १७७
जंबू०प०८-१६० तो खवगवयणकमलं
तोरणदारायाम
भ. श्रारा० १४७७ तो खंडियसव्वंगो
तोरणदारेसु तहा __ जंबू० ५० ७-१०१
वसु० सा० १४२ तो खिल्लविल्लजोएण
तोरणवेदीजुत्ता तिलो० ५० ४-२१७६
वसु० सा० १७८ तो गद्दतोय-तुसिदा तिलो० सा० ५३६
तोरणसयसंजुत्ता जंबू० ५० ५-६६ तो चंदसूरणागा- तिलो. सा. ६६६
तो रयणवंत सव्वा- तिलो० सा० १५४ तो चित्तविमलवाहण तिलो. सा० ८७८
तो(तित्थ)रिसिसमुदायद्विद- छेदपि० २६६ तो जाणिऊण रत्तं भ० श्रारा० १७१
तो रोयसोयभरिओ
वसु० सा० १८८ तोडिवि सयल-वियप्पडा पाहु० दो० :३३
तो वासयअज्झयणे गो० जी० ३५६ तो णचा सुत्तविदू
भ. श्रारा० ६२६
तो वि महापातकदोस- छेदपिं० ३०६ तो णियभवणपइट्ठो
छेदपिं० ३१७ | तो वेदणावसट्टो भ० श्रारा० १५०२ तो णेरिदि-जल विस्सो तिलो० सा० ४३५ तो वेयड्ढकुमारं तिलो. सा० ७३४ तो तत्थ लोगपाला जबू०प० ११-२५१ | तो सत्तमम्मि मासे भ० श्रारा० १०१७ तो तम्हि चेव समए वसु० सा० ५३६ / तो संखठाणगमणे तिलो० सा०६७

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