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अन्नबनससिएणं अर्थसहित. लेहिं के० ) सूदमेन्यो दृष्टिसंचारेन्यः एटले सूक्ष्म जे दृष्टिनो संचार मिषो मिषादिके चकुने हलाववाथकी थाय. अहीं सुहुमेहिं प्रमुख पदमांहे वहु आगारनां नाम दीधां माटे ए त्रण पदनी बहुवचनांत आगार नामें संपदा जाणवी. एमां लघु उगणत्रीश अने गुरु एक, मली त्रीश अदरो .
एवमाइएहिं आगारेदिं अन्नग्गो, अ
विरादिर्ज, हुङ मे काउस्सग्गो ॥ ३ ॥ अर्थः-( एवमाश्एहिंथागारेहिं के० ) एवमादिकैः आगारैः एटले एव मादिक जे पूर्वोक्त बार आगार कह्यां, ते आदें देश्ने अंहिं आदि शब्द थकी बीजां पण चार (आगारेहिं के०) यागार लेवां, तेनां नाम कहे . एक तो वीजली अथवा दीपकादिकनी उजेहि एटले अग्निना अजवा लानो प्रकाश आपणा शरीर उपर पडे, तो उढण वस्त्रादिक खेबु पडे अथवा बीजे स्थानकें जq पडे, तेथी महारो काउस्सग्ग न जांजे. बीजो मार्जार तथा उंदरादिक प्रमुख, आगल जतां श्रावतां होय. दोमता होय, तथा मुख आगल पंचेंजियजीवनु बेदन, नेदन थतुं देखे. तो बीजे स्थान के जवू पडे, तेथी काउस्सग्ग न नांगे. त्रीजो अकस्मात् चोरनी धाम आवी पडे,अथवा राजादिकना नयथी बीजे स्थानकें जर्बु पडे आघा पाग थर्बु पडे तेथी काउस्सग्ग न जांगे, तथा चोथो अग्नि लागे अथवा घरनी नीत खमहमती पमती जाणीयें तथा पोताने अने पर जे साधु आदिक तेने सादिक दंश मारे, अथवा सिंहादिकना उपव थता जाणे, इत्यादिक अनेरा पण जिहां विलंब करतां घणीज धर्मनी हानि थती देखीयें तो तिहां अणपूगो काउस्सग्ग पारतां थकां पण काउस्सग्ग न जागे, ए चार आगार अपवादमार्गे जाणवा, पण उत्सर्गे न जाणवा. एनी साथें पूर्वोक्त बार आगार मेलवीये तेवारें शोल आगार थाय, ए सर्व शोल आगारोयें करीने काउस्सग्ग पारतां थोमीशी विराधना थतां पण ए व्यापार करतां महारो काउस्सग्ग (अजग्गो के० ) अनग्नः एटले सर्वथा अखंमित (अविराहि के० ) अविराधितः एटले थोमोशो देशथी पण न विराध्यो, अर्थात् देशथी पण अविराधित एवो अखंमित संपूर्ण (काउस्सग्गो के०) कायो त्सर्ग ते ( मे के०) महारे (हुऊ के ) होजो, एमां एवमाश् श्त्यादिक
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