Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University

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Page 16
________________ की रचना की है। इन्हें अभिनव वाग्भट अथवा "वाग्भट द्वितीय" के नाम ते अभिहित किया जाता है। एगलिंग (Eggeling ) ने भ्रांतिवश इन दोनों लेखकों को एक ही व्यक्ति समझकर उसे दोनों ग्रन्थों का रचयिता मान लिया है। किन्तु काव्यानुशासनकार वाग्भट द्वितीय द्वारा अपने ग्रन्थ में स्वयं वाग्भट प्रथम का उल्लेख दोनों के परस्पर भिन्न होने किंवा भिन्न भिन्न अलंकार - ग्रन्थों के प्रणयन करने का एक प्रामाणिक संकेत है जिसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता। आयुर्वेद के प्रकरण ग्रन्थ "अष्टांगहृदय" के रचयिता भी "वाग्भट " नाम के ही आचार्य हो चुके हैं किन्तु इन्हें "वाग्भटालंकार" के प्रपेता वाग्भट प्रथम से अभिन्न नहीं माना जा सकता क्योंकि दोनों की वंश-परम्परा भिन्न भिन्न है तथा दोनों का कार्यकाल भी एक नहीं । - वाग्भट प्रथम ने अपने वंश के सम्बन्ध में कुछ थोड़ा सा संकेत "वाग्भटालंकार" में किया है जिससे ज्ञात होता है कि इनका प्राकृत नाम "बाहड" तथा पिता का नाम सोम था। 3 1. संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास लेखक - सुशील कुमार डे अनुवादक श्री मायाराम शर्मा - - पृ. 176-77 4 2. * दण्डिवा मनवा रटा दिपपीता यां काव्यगुणाः । वयं तु माधुर्यौज : प्रसादलक्षणांस्त्रीनेव गुणान्मन्यामहे । काव्यानुशासन, पृ० 31 3. बम्भण्डसुत्तिसम्पुडमुक्तिअमणिपो पहासमूह व्व । सिरिवाहड त्ति तणओ आति बुहो तस्स सोमन्स ।। ब्रह्माण्ड शक्तिसम्पुट मौक्तिकमणे: प्रभासमह इव । श्रीवाहड इति तनय आसीदबुधस्तस्य सोमस्य । । वाग्भटालंकार, 4 / 147 पृ. 95

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