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अलंकार आदि विषयों के अतिरिक्त नाट्यशास्त्रीय नायक - नायिका दि विविध विषयों का संभवतः प्रथमतः वर्णन मिलता है।
आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र-गुपचन्द्र विरचित "नाट्यदर्पप" तो नाट्यशास्त्रीय ज्ञान हेतु दर्पण ही है, इसमें अनेक नवीन मान्यताओं को स्थान दिया गया है। आचार्य नरेन्द्रप्रभतरि कृत "अलंकारमहोदधि आठ तरंगों में विभक्त है, जिसमें अलंकारशास्त्रीय समस्त विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है। अमरचन्द्रतरि की “काव्यकल्पलता - वृत्ति व विनयचन्द्रसरि की "काव्य-शिक्षा" ये दोनों गन्ध काव्य - रचना के इच्छुकों हेतु अत्युपयोगी हैं। दस परिच्छेदों में विभक्त विजयवी की “श्रृंगारार्पवचन्द्रिका अलंकारविषयक गन्थ है। अजितसेन द्वारा रचित "अलंका रचिन्तामपि पाँच परिच्छेदों में विभक्त है, इसके द्वितीय, तृतीय, व चतुर्थ परिच्छेदों में केवल अलंकारों का विवेचन किया गया है, जो अजिततेन के अलंकारशास्त्रीय गंभीर ज्ञान का सूचक है। आचार्य वाग्भट द्वितीय ने भी "काव्यानुशासन" नाम से एक गन्थ की रचना की है, इसमें अधिकांश सामग्री हेमचन्द्राचार्य के “काव्यानुशासन" के आधार पर विवेचित है। मंडनमन्त्री का "अलंकारमण्डन और भावदेवतरि का "काव्यालंकारतार" - ये दो अलंकारशास्त्रीय लघु गन्थ हैं, जिनमें प्राचीन पद्धति का अनुसरप किया गया है। पदमसुन्दरगपि का "अकबरताश्रृिंगारदर्पप' नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थ है, इसमें विविध महत्वपूर्ण विषयों का विवेचन है। सिद्विचन्द्रगपि का "काव्यप्रकाशखण्डन' आचार्य मम्मट के प्रसिद्ध गन्ध "काव्यप्रकाश के खण्डन की दृष्टि से लिखित है।
___उपर्युक्त गन्थों के अतिरिक्त अन्य अनेक ग्रन्थ व टीकाएं भी हैं, जो यत्र-तत्र विभिन्न गन्ध-भण्डारों में उपलब्ध हैं अथवा जिनका यत्र-तत्र गन्थों में उल्लेख मात्र मिलता है।