Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 15
________________ ॥७४॥ २. पादलिप्तसूरि-कथानक [11.A] अस्थि इह भरह-वासे नामेणं कोसला पुरी रम्मा । जीए पडिरूवमन्ना न पावई का वि नयरि त्ति ॥७१ ॥ तीए समिद्धो लोयाण माणणिज्जो य सावओ सेट्ठी ।। फुल्लो नामेणं तस्स समगुणा भारिया पडिमा ॥७२॥ तीए य नत्थि पुत्तो तदत्थ वइरोट्ट-देवयाए सा । आराहणत्थमायरइ पोसहं चत्त-वावारा ॥७३॥ जा चिट्ठइ एग-मणा पोसह-सा[11.B]लाए धम्म-जागरियं । कुव्वंती तब्भत्ति-रंजिया आगया 'देवि-वइरोट्टा उल्लवइ वच्छे होहिंति तुज्झ बहु पुत्ता । परमेस्थ-संतियाणं सूरीणं नागहत्थीणं ॥७५ ॥ पय-पक्खालण-सलिलं पिवेज्ज अज्जेव सुद्ध-भावेण । विग्घ-विघायण -हेडं णिग्गया तो इमा देवी ॥७६ ॥ पडिमा वि पहायम्मी कय-किच्चा पउण-पहर-उद्देसे । सूरि-वसहीए चलिया पविसंतीइ तहिं तीए दिट्ठो साहू बहिया गयाण सूरीण चलण-सोय-जलो । पुट्ठो [12-13 अप्राप्य ] . . . . . . . . . . . [14.A] . . . . . साहुसेवावहारियं सव्वं । वायरण-छंदऽलंकारमाइयं साहियं गुरुणो ॥७९ ॥ अपि च - जं किंचि सुयं दिटुं पन्ना-मेहा-गुणेण तं सयलं । साहइ सनिम्मियं पिव पालित्तो सुकय-संपुन्नो ॥८० ॥ १. देवी- वइ । २. विग्घायण । ३. निगया ४. पहायम्मि ॥७७॥ ॥७८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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