Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 37
________________ ३० पादलिप्तसूरि-कथानक इय चिंतिऊण पहुणा साहु-सयासाओ गिहिउं सूइं । तं मज्झे सा ठविया धारणि-विज्जाए सुहमयरी तो सो भणिओ एवं दंससु गंतूण ताण तेणावि । निवपुरओ तं मुक्कं तहट्ठिया [42.B] दहुं तं सूई विहप्फइ मणे विसन्नो रन्ना उण पमुइएण निय-नयरे । महया विच्छड्डेणं पवेसिओ सूरि पालित्तो संमाणिओ य उचियं परिवार - जुएण राइणा तत्तो । बहुमाणेणं निसुया पालित्तयसूरि निम्मविया कह नज्जइ इय भणिए कहिया तेणं तओ तरंगवई । निज्जुत्तीओ' बहुसो वयणमिणं जंपइ तत्तो . बहु- कव्व - रसाइन्ना तरंगवइ यत्ति सक्कहा तीए । विउसयणो राया वि य सव्वो वि हु विम्हिओ जाओ ॥३१७॥ मच्छरिओ ता जंपइ पंचालो सावधारणो चलिओ । देव इयं मम कव्वाओ चोरिया तह अन्नेहिं सीसं कह विन फुट्ट जमस्स पालित्तयं हरंतस्स । जस्स मुह-निज्झराओ तरंगवइया नई वूढा १. निजुत्तीओ । ॥३१३ ॥ Jain Education International ॥३१४ ॥ For Private & Personal Use Only ॥३१५ ॥ ॥३१९ ॥ ॥३२० ॥ [43. A] लज्जिय-चित्तो मणयं जाओ संघो तओ य सूरीहिं । संकेयं काऊण विहियं कीडं (?) इमं सहसा एवं सो पालित्तो मओ त्ति जा निज्जई बहिं ताव | सव्वो वि जणो पकुणइ तस्स पसंसं बहुं पत्तो तम्मज्झट्ठिओ जंपइ पच्छायावेण ताविओ धणियं । उब्भविय बाहुदंडं महया सद्देण पंचालो ॥३२१ ॥ ॥३१६ ॥ ॥३१८ ॥ ॥३२२ ॥ ॥३२३ ॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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