Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

Previous | Next

Page 46
________________ ३९ ॥४०७॥ ॥४०९ ॥ प्रबन्ध - चतुष्टय गुरु-कोउगेण लग्गो वाएउं जाव किंपि नो सम्म । बुज्झइ तो अनेणं केणइ सो जंपिओ [53A] एवं एईए सयलमत्थं बुज्झइ एसो उ बप्पहट्टि त्ति । तो तेणं सो भणिओ भट्टारय कहसु एयत्थं ॥४०८॥ एवं भणिए तो बप्पहट्टिणा तह कहेवि तीयत्यो । कहिओ जह तस्स मणं विम्हय-कोडिं समारूढं चिंतइ मणम्मि एवंविहस्स विउसस्स एत्थ पत्थावे । जइ होइ मज्झ रज्जं तं पि हु वियरामि अवियप्पं ॥४१० ॥ इय मुणिय तस्स भावं भणिओ बीएण कुणसु मा खेयं । सामिय जइ विज्जंतं नो दिज्जइ तो भवे दोसो ॥४११ ॥ जइया भवेइ तइया एवं निय-चिंतियं करेज्जासु । इय सुणियं कुमरेणं पुट्ठो सो चेल्लओ [53B]एवं ॥४१२॥ तुम्हाण कत्थ वासो जहट्ठिए साहियम्मि तेण समं । सूरि-सगासे पत्तो नमिउं तं तो इमो पुट्ठो ॥४१३ ॥ भयवं विज्जइ का वि हु संपत्ती एत्थ अम्ह जम्मम्मि । करुणं काउं साहह एयं अवरोहओ अम्हं ॥४१४॥ नाडी-संचारेणं तह चूडामणि-वरोउएसाउ । मुणिऊणं सूरीहिं भणियं निसुणेसु एग-मणो ॥४१५ ॥ तुम्ह न याणामि अहं सीलं जम्मं कुलं तहा जाई । निय-नाण-बलेणेयं संपइ जाणामि तह तुज्झ ॥४१६ ॥ छत्तीस-गाम-लक्खाण नायगत्तं इहेव जम्मम्मि । होही थोव-दिणाणं मज्झे नत्थेत्थ संदेहो ॥४१७ ॥ १. जइट्ठिए fain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114