Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 69
________________ ६२ ॥६६४॥ बप्पभट्टि - कथानक अह अन्नया निवेणं सूरि-सयासम्मि चेल्लओ एगो । दिट्ठो मोडिय-बहु-भंग-मुद्ध-केसो तओ राया ॥६६२ ॥ तं अवलोयइ सो वि नाऊणं निव-मणं तओ काउं । लोयं तुरियं तत्था84A]व आगओ तो निवो भणइ ॥६६३ ॥ हिट्ठो मज्झाणेणं भावो नाओ त्ति दिज्जइ किमस्स । लुंचियसिरस्स भयवं इह पुढे सूरिणा भणियं लोय-कए निव दिज्जइ गुङ-घय-दाणं ति विस्सुई समए ।। दोहं लक्खाण कया वित्ती गुङ-घय-कए तत्तो ॥६६५ ॥ अह अन्नया नरिंदो भणिओ अत्थाण-मंडव-निविट्ठो । पहुणा नरवइ विहलो परिस्समो अम्ह संजाओ ॥६६६ ॥ एत्तिय-मेत्तं कालं जम्हा अम्हाण संगमो तुज्झ । . न हु को वि गुणो जाओ धम्मं पइ तेण विहलो त्ति ॥६६७ ॥ अकयं पि कयं अम्हेहिं एत्थ एयाए राय-बुद्धीए । अणुयत्तिओ जिणिंदाण जइ मए 'ठाइ नर [84B] नाहो ॥६६८ ॥ ते लज्जिज्जंती मुणिणो नरवइ अम्हाण आगमो ते उ । जणे पुरो अम्हाणं चरियं परं विसंवयइ ॥६६९ ॥ तथा हिजुगमेत्तंतर-दिट्ठीए गमणमिह कत्थमिह पुव्व-पुरिसाण ।। कत्थेयं अम्हाणं मत्त-गइंदोवरिं गमणं ॥६७० ॥ अणवज्ज-सार-हिय-मिय-पयंपणं कत्थ सुंदरं ३जइणं । कत्थेयं चाडुय-कोडिय-संजुयं वयणमम्हाणं ॥६७१ ॥ बायालीसेसण-दोस-विरहिओ कत्थ ताण आहारो । कत्थ इमो एगट्ठाणट्ठियाणं तहा अम्हं ॥६७२॥ १. गइ २. लहिज्जंती ३. पूरं ४. जईणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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