Book Title: Prabandh Chatushtay Author(s): Ramniklal M Shah Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 86
________________ प्रबन्ध चतुष्टय सो विय भोओ कुमरो महंत सामंत-लोय - परियरिओ । इय नाऊणं चरियं कन्नउज्जे झत्ति संपत्तो पसंतस् य हत्थम्मि मालिएणं फलं तयं तस्स । दिनं बिज्जउरा एवं जंपमाणेण ढोयणयं सउणो त्ति सुणिवि धरिडं करम्मि बीओ अहं इहं राया । [ 104 .. अप्राप्य 1 [105A] जिण दंसणस्स अम्मो व्व कुणइ भत्तिं पमोएण किरि अम्म- राइणा जत्थ कारियं नियं तत्थ 1 सव्वत्थ वि देवहरं पहुणा निम्मावियं सो वि तह चेव कुणइ राया सुमरंतो अम्मराइणो भत्ति । निवो गुणराई जाओ अम्मो व्व किं बहुणा नउई पंचाणउई किर ताणं आसि आउयं एत्थ । सिरि-बप्पहट्टि - अम्माण असम- माहप्प - कित्तीणं • इति तत्काल-कवि-वादि-गजघटा-पंचवक्त्रस्य ब्रह्मचारीतिख्यात- बिरुदस्य श्री बप्पहट्टिसूरेः कथानकं समर्थितं ॥ १. ॥ छ ॥ ६८५ ॥ छ • Jain Education International श्री ७९ ॥८४७ ॥ For Private & Personal Use Only ॥८४८ ॥ ॥८४९ ॥ ॥८५० ॥ ॥छ ॥छ ॥ संवत् १२९१ वैशाख वदि १३ सोमे पुस्तिका लिखिता ॥ ॥छ ॥ शुभं भवतु ॥ छ ॥ ॥८५१ ॥ ॥८५२ ॥ ॥८५३१॥ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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